VigyapanSuchana

August 1991

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गायक और वादकों की आवश्यकता

कार्यक्रमों में जाने योग्य विनम्र स्वभाव के गायक एवं वादकों की आवश्यकता है पर उन्हें न्यूनतम 3 माह का समय देना अनिवार्य होगा।

औसत भारतीय नागरिक स्तर का जीवन निर्वाह देने का भी प्रावधान है इच्छुक परिजन तत्काल शान्तिकुँज हरिद्वार के पते पर आवेदन करें।

आयोजकगण प्रवचन मंच की तैयारी करेंगे। इस तैयारी के एक घंटे की अवधि में फिर श्रद्धाँजलि समारोह के शान्तिकुँज के गीत कैसेट बजाये जाते रहेंगे। साढ़े सात बजे से 9 बजे तक गीत संगीत एवं शांतिकुंज के प्रतिनिधि परम पूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म शरीर की शक्तियों, सामर्थ्यों और गतिविधियों पर प्रकाश डालने वाला प्रवचन संदेश देंगे। इस प्रकार द्वितीय दिन का आयोजन सम्पन्न होगा।

तृतीय दिन प्रातःकाल ध्यान-साधना से पूर्व दीक्षा संस्कार सम्पन्न होंगे। उसके तुरन्त बाद अखण्ड जप का क्रम यथा पूर्व प्रारम्भ हो जायेगा। अन्य कोई संस्कार होने होंगे, तो वह अलग प्रवचन पंडाल में होंगे। दिन में शक्ति साधना स्थल पर किसी तरह की कोई भी शाब्दिक हलचल नहीं होगी। उस स्थान पर कठोरतापूर्वक मौन व्रत का पालन किया जायेगा। व्यवस्थापकों को कोई बात करनी अनिवार्य होगी, तो वे संकेतों में करेंगे अथवा इतनी कम आवाज में, जिसे दो के अतिरिक्त तीसरा न सुन सके।

तीसरे दिन अखण्ड जप अनुष्ठान का समापन सायंकाल दीपयज्ञ के साथ होगा। यदि आगन्तुकों की संख्या अधिक अनुमानित हो, तो साधना स्थल पर पूर्णाहुति मंत्र से विसर्जन कर दिया जाए और दीप यज्ञ प्रवचन पंडाल में सम्पन्न किया जाये, पर यदि संख्या सीमित ही रहे या साधना स्थल आकार में बड़ा हो, तो समापन दीप यज्ञ वहीं सम्पन्न कराया जा सकता है। तीसरे दिन ही दीपयज्ञ के पश्चात् अन्तिम परम पूज्य गुरुदेव की कारण सत्ता और मिशन की भावी संभावनाओं पर प्रवचन सम्पन्न हो सकेगा।

जिस समय अखंड जप चल रहा होगा, शान्तिकुँज टोली दोनों दिन उस अवधि में देवस्थापना कार्यक्रम सम्पन्न करेगी। जप की टोलियों का निर्धारण करते समय जिन परिजनों के घर देव स्थापना होनी है, उनके जप के समय और देव स्थापना के समय का समायोजन पहले से ही बड़ी सूझबूझ के साथ आयोजकों को करना होगा, ताकि किसी तरह की कहीं कोई परेशानी न हो। स्मरणीय है कि भगवती गायत्री की देवस्थापना और उपासना प्रत्येक भारतीय परिवार में परम पुनीत कर्तव्य की भाँति करने का इस मिशन ने परम पूज्य गुरुदेव को आश्वासन दिया है, उसे सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ सम्पन्न किया और कराया जाये।

चौथे दिन प्रातःकाल कारण शरीर का ध्यान और आधा घंटे का सामूहिक जप और पूर्णाहुति मंत्र के साथ समापन और एक घंटे स्थानीय कार्यकर्ताओं की गोष्ठी होगी। अगले स्थान की दूरी के आधार पर शान्तिकुँज से गई टोली भोजन वहीं लेकर अथवा रास्ते के लिए टिफिन लेकर वहाँ से विदाई लेगी। यह इस सम्पूर्ण अनुग्रह-अनुदान वर्षा कार्यक्रम का स्वरूप है। इसे छोटे या बड़े रूप में स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप किया जा सकता है, पर साधना काल की पवित्रता और मर्यादाओं का अनुपालन सभी को एक समान करना अनिवार्य होगा।

इस आयोजन की सफलता का सर्वोपरि आधार पूर्वापर तैयारी होगी। अखंड जप स्थल को वर्षा और धूप से बचाने के लिए पहले से वाटर प्रूफ शामियाने की व्यवस्था की जाय। इस स्थल को जी भर कर साफ-सुथरा बनाकर झाड़ियों, बैनरों, फूलों और जौ उगाकर जवारों से सजाया जाये। स्टेज, जहाँ चित्र स्थापना और अखंड दीपक रखा जाये, उसे प्रायः चार फुट ऊँचा रखा जाये। पहले दिन मंगल कलश यात्रा भी बैंड बाजों और झाँकियों सहित निकले, जल कलश स्टेज के नीचे वाले भाग में श्रद्धापूर्वक प्रतिष्ठित किये जायें। साधना स्थल यथासंभव जन कोलाहल से अलग किन्तु महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान पर रखा जाये। उसे यथा संभव प्राकृतिक बनाने के लिए तोरण, बंदनवार और केले के पत्तों से आच्छादित किया जाये,


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