बहिरंग का आनन्द अंतरंग पर निर्भर

August 1991

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अभावग्रस्तों की तुलना में यदि अपनी उपलब्धियों को आँका जाय तो प्रतीत होगा कि अनेकों की तुलना में हम सुसम्पन्न हैं। यदि अपकारों को भुला दिया जाय और उपकार को ही स्मरण किया जाय तो प्रतीत होगा कि जो हस्तगत होता रहा है वह भी कम नहीं है; असंख्य प्राणियों की तुलना में हर दृष्टि से वरिष्ठ काया अपने को मिली है, यह कम सौभाग्य की बात नहीं है। अपना चिन्तन और चरित्र मानवी गरिमा के अनुरूप है, यह कम संतोष की बात नहीं है फिर समाज के, ईश्वर के जो उपकार अपने ऊपर हैं, उन्हें एक-एक करके गिना जाय तो प्रतीत होगा कि उपलब्धि सौभाग्य सुयोग भी कम मूल्यवान नहीं है; अपनी असफलताओं की गणना छोड़कर यदि प्राप्त हुई सफलताओं पर दृष्टि डाली जाय तो प्रतीत होगा कि प्रगति की दिशा में अपने कदम कम नहीं उठे हैं।

अपने से बाहर दृष्टि दौड़ाई जाय और ध्यानपूर्वक देखा जाय तो इस संसार में कई पराक्रमी, पुरुषार्थी विचारशील, दूरदर्शी, परोपकारी मनुष्य अभी भी मौजूद हैं तथा भूतकाल में भी हो चुके हैं। भूतकाल के महामानवों के कर्तृत्व ऐसे हैं जिनके पठन, श्रवण या मनन, चिन्तन करने से ऊँचा उठने, आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

प्रकृति का अवलोकन जिस ओर से भी किया जाय उसकी शोभा सुषमा देखते ही बनती है। ऊपर आकाश को देखा जाय तो दिन में सूरज और रात्रि में चन्द्र तारों से झिलमिलाता गगन कितना सुन्दर और शोभायमान लगता है। बदलती ऋतुएँ अपने साथ कैसी विशिष्टतायें लाती हैं और कैसा अद्भुत प्रभाव छोड़ती हैं। वर्षा के बादल और बसन्त के खिलते सुमन कैसी गुदगुदी उत्पन्न करते हैं। चित्र विचित्र पक्षियों का आकार प्रकार कैसे विचित्र रंगों में रंगा हुआ है? चलते फिरते, बोलते, डोलते खिलौनों को देखकर बालक प्रसन्नता से उछलने लगते हैं तो फिर अपने लिए यह पेड़ पौधों वाली पशु पक्षियों वाली दुनिया सहज ही कितनी आनन्द दायक होनी चाहिए? धरती पर बिछी हरी घास का मखमली फर्श, लहलहाती हुई हरीतिमा इतनी सुन्दर है कि मनुष्यकृत विनोद साधन उसके सामने तुच्छ लगते हैं। पर्वतों की ऊँचाई जलाशयों की गहराई कितनी आश्चर्यजनक है। हाट बाजार से लेकर सघन वन्य प्रदेशों की शोभा सुषमा अपनी अपनी विविधता से भरी होती है। इन्हें यदि सौंदर्य दृष्टि से देखा जाय तो प्रतीत होगा कि स्वर्ग की शोभा का जैसा वर्णन किया जाता है, यहाँ उसकी तुलना में कुछ भी कमी नहीं है। अपने आसपास इर्द−गिर्द जो हलचलें होती रहती हैं उसमें स्वर्ग की विभूतियाँ भी हैं और दुष्कृत्यों का परिणाम, हाथों-हाथ मिलने वाली नारकीय यातनायें भी। इस सबमें सीखने योग्य बहुत कुछ है।

ज्ञान का समुद्र इस संसार में इतना भरा पड़ा है कि उसे संग्रह करते रहा जाय तो उस दिव्य सम्पदा


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