समर्पण और अस्थिर (Kahani)

August 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक बार पाटलिपुत्र की गंगा में भयंकर बाढ़ आई। समीपवर्ती बस्तियों, खेतों में पानी भर गया और महाविनाश के दृश्य उपस्थित होने लगे। ज्ञानियों की एक सभा हुई। उसमें विचार करके निश्चय हुआ कि कोई ऐसी स्त्री जो सर्वतोभावेन पतिव्रता रही हो, यदि इस पानी को पैरों से स्पर्श करे तो बाढ़ उत्तर सकती है।

समस्त नगर में ऐसी स्त्री तलाश करायी गयी। पतिव्रता आईं तो पर सर्वतोभावेन पतिव्रता ऐसी न मिली जिसके चरण स्पर्श से बाढ़ उतर जाती। अनेक महिलाएँ आई और प्रयोग में परीक्षा देकर असफल वापस चली गई।

अन्त में एक वेश्या आई उसने पैर लगाये और तत्काल बाढ़ उतरना शुद्ध हो गई। सभी को बड़ा आश्चर्य था कि वेश्या पतिव्रता कैसे हुई?

वेश्या ने उस रहस्य को स्वयं बताया। जिस दिन मैं जिसे अपना पति वरण करती हूँ। उस दिन समूचे तन, मन, धन से उसी के निमित्त अपने को अर्पित करती हूँ। दूसरे किसी का ध्यान तक मन में नहीं आने देती। भले ही एक दिन के लिए हो वह होती समग्र पतिव्रता ही है।

लोगों ने समझा कि समग्र समर्पण और अस्थिर व्यवहार में क्या अंतर है?


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118