शक्ति साधना वर्ष के अखण्ड जप प्रधान आयोजन

August 1991

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वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड का गहन अध्ययन किया और ऐसे अद्भुत रहस्यों का पता लगाया, जिनकी चर्चा किसी तिलस्मी घटना जैसी लगेगी। ऐसे ग्रह हैं, जिनके एक मुट्ठी द्रव्य का भार एक हजार पृथ्वियों के वजन से भी अधिक होगा। ऐसे नक्षत्र है, जिनके एक-एक कण अपने आप में सम्पूर्ण सौर मंडल को विद्युत आपूर्ति कर सकने में समर्थ हैं, ऐसे प्रकाश कण हैं, जो सेकेंड के अरब भाग में सारी सृष्टि की परिक्रमा करके अपने मूल स्थान पर लौट आते हैं। यह बस प्रत्यक्ष देखा तो नहीं जा सकता, पर है नितान्त यथार्थ और प्रयोगशाला में सिद्ध होने योग्य।

हमारे ऋषियों का कथन है कि मनुष्य काया में विद्यमान वैभव भी उपरोक्त कथन से कम नहीं, अपितु हजार गुने अधिक महत्वपूर्ण हैं। इसके एक-एक कोश में एवरेस्ट जैसी पर्वत श्रृंखलाएँ सूर्य जैसे विद्युत ट्राँसफार्मर और गंगा-यमुना जैसी विशाल नदियाँ प्रवाहमान है। मनुष्य का दुर्भाग्य है कि वह अपने ही भीतर छिपी इस विराट सम्पदा को पहचान नहीं पाता, उसके लिए वह उसी तरह भटकता घूमता है, जैसे किसी सड़क के किनारे भीख माँगने वाले के घर खजाना गड़ा पड़ा हो।

आज व्यक्तिगत जीवन का भटकाव, पारिवारिक जीवन में स्वार्थ और सामाजिक जीवन में अपराध इसलिए बढ़ रहे हैं कि मनुष्य बाह्य साधनों में सुख ढूँढ़ने में भटक गया है, इन्द्रियों की ललक उसे बारूदी फुलझड़ी की तरह थोड़ा स्वाद देकर शरीर को खोखला कर देती है। जर्जर शरीर बीमारियों का घर होता है, सो वे भाग कर आतीं, उसमें अपना डेरा जमाती हैं। स्वार्थ ऐसा विग्रह है जो लोगों को अपनों से भी छीन-झपट लेने में लज्जा अनुभव नहीं करने देता। धन ऐसी मृगमरीचिका है, जिसके पीछे भटकता इन्सान एक क्षण को भी शान्ति का अनुभव नहीं कर पाता। आज के विग्रह और विपन्नताएँ इसीलिए हैं कि वह बाह्य साधनों के पीछे अंधी दौड़ लगा रहा है। जब कि कस्तूरी मृग की तरह प्रगति और प्रसन्नता के सभी साधन मनुष्य के अन्तःकरण में गहराई तक समाए हुए हैं।

आत्मिक सम्पदा की प्राप्ति का एक ही रास्ता है अन्तर्मुखी होना। जीवन में साधना का समावेश मनुष्य का इतना बड़ा सौभाग्य है, जिस पर सृष्टि का सारा वैभव न्यौछावर किया जा सकता है। उससे न केवल व्यक्ति को सुख-शान्ति मिलती है अपितु सारे समाज की प्रगति और प्रसन्नता का मार्ग प्रशस्त होता है। परम पूज्य गुरुदेव ने साधना को ही युग परिवर्तन का आधार माना था। इसीलिए शान्तिकुँज की स्थापना हुई थी। साधनाओं को विज्ञान सम्मत प्रतिपादित करने के लिए ब्रह्मवर्चस की स्थापना का उद्देश्य भी यही था कि न केवल उन लोगों को, जिनमें से पहले से श्रद्धा के संस्कार हैं अपितु बुद्धिजीवी वर्ग को भी साधना की कक्षाओं में प्रवेश दिलाया जाये इसके बिना न तो मानवीय सुख-शान्ति की कल्पना की जा सकती है और न मनुष्य के पतन-पराभव की ओर बढ़ते हुए कदम रोके जा सकते हैं। समग्र परिवर्तन का एक मात्र आधार-उपासना-साधना, आराधना का अवलम्बन ही है।

महाप्रयाण से पूर्व परम पूज्य गुरुदेव ने वंदनीय माता जी से एक दिन कहा था-परमहंस रामकृष्ण के देह विसर्जन के पश्चात उनकी ही आज्ञा से माँ शारदामणि ने 30 वर्ष तक श्रीरामकृष्ण मिशन को संरक्षण दिया-संचालन किया था, मैं चाहता हूँ कि इस मिशन की प्रत्यक्ष देख-भाल तुम करो, प्रकृति को बदलने का परोक्ष कार्य हम अपनी कारण सत्ता से सम्पन्न करेंगे। वंदनीया माता जी ने आशंका व्यक्त की कि इतना बड़ा भार उठाना मेरे लिए कैसे संभव होगा? तो उन्होंने आश्वस्त किया, यह शक्ति तुम्हें साधना से मिलेगी। आज मिशन का सारा गतिचक्र इसी परिधि में घूम रहा है।

परम पूज्य गुरुदेव की प्रथम पुण्य तिथि पर पाँच दिन का अखण्ड जप-उच्चस्तरीय साधना में प्रवेश का प्रथम पड़ाव था, जिसमें 24 हजार परिजनों ने भावनापूर्वक भाग लिया। एक बार में 2400 परिजन अखण्ड जप में बैठते थे। 24 घंटे में प्रायः पाँच करोड़ अर्थात् 5 दिन में 24 करोड़ गायत्री मंत्र जप का एक ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान शक्ति स्वरूपा वंदनीया माता जी के संरक्षण में सम्पन्न हुआ। उन्होंने तभी इस वर्ष को शक्ति साधना वर्ष घोषित किया और पूरे वर्ष न केवल समूचे देश भर में अपितु विदेशों में भी इसी तरह के तीन-तीन दिवसीय साधना प्रधान गायत्री महामंत्र के 24 अखण्ड जप आयोजन सम्पन्न करने की घोषणा की। देवशक्तियों की अनुदान वर्षा ऐसे महापुरश्चरणों से ही संभव होती है। इतनी बड़ी संख्या में यह आयोजन सम्पन्न करने के लिए इस वर्ष 24 टोलियाँ निकालने और सभी 24 प्रान्तों में शक्तिसाधना का आलोक जगाने की तैयारी की गई है। प्राचीनकाल में ऋषि आश्रमों में स्थापित अखण्ड अग्नियों से गार्हपत्याग्नियाँ सारे देश में जाती थीं। जिस वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को बोध हुआ था, उस बोधि (वट) वृक्ष की शाखाएँ सारे विश्व में गई थी। उसी तरह प्रथम पुण्य तिथि पर सम्पन्न अखण्ड जप की ऊर्जा को सारे देश भर में इसी वर्ष पहुँचा देने का बड़ा निश्चय किया गया है।

यह अनुग्रह-अनुदान वर्षा कार्यक्रम 3-3 दिन के रखे गये हैं। टोली जिस दिन पहुँचेगी उस दिन सायंकाल सर्वप्रथम पर्व निर्धारित साधना स्थल की स्टेज पर देव साक्षी स्वरूप परम पूज्य गुरुदेव वंदनीय माता जी के चित्र एवं अखण्ड दीप की विधिवत वेदमंत्रों के साथ स्थापना की जायेगी। पूजा अर्चना के पश्चात् तीन दिवसीय साधना के अनुबंध बताये और संकल्प कराये जाएंगे और परम पूज्य गुरुदेव के स्थूल शरीर की सिद्धियों, शक्तियों की कार्यक्रमों पर प्रकाश डालने वाला प्रथम प्रवचन सम्पन्न होगा। जल यात्रा, कलश स्थापना कार्यक्रम टोली पहुँचने से पूर्व स्थानीय स्तर पर सम्पन्न किए जायँ। पहले दिन मात्र इतना ही कृत्य सम्पन्न होगा।

अगले दिन अर्थात् द्वितीय दिन प्रातःकाल 5 बजे घंटी बजेगी। एक घंटे श्रद्धाँजलि समारोह के गीतों का लाउडस्पीकर पर मंद ध्वनि में प्रसारण होगा। 6 बजे आरती-स्तवन वंदनीया माताजी के स्वर में, तत्पश्चात् पवित्रीकरण आदि पंचोपचार, फिर परम पूज्य गुरुदेव की वाणी में स्थूल शरीर की ध्यान साधना और अमृत वचन, उसके तुरन्त पश्चात शंख ध्वनि के साथ अखंड जप प्रारम्भ होगा। यह जप सूर्योदय से प्रारम्भ होगा और सूर्यास्त तक चलता रहेगा। अखण्ड जप के समय अखण्ड दीपक प्रज्वलित रखना अनिवार्य रहेगा। अखंड जप करने वाले परिजन एक-एक घंटे की पारियों में बदलते रहेंगे। नये बैठने वाले पाटों पर रखी तश्तरी और पंचपात्र आचमनी से पवित्रीकरण करने के पश्चात् जप प्रारम्भ करते रहेंगे। उठते समय तीन आचमन करने के बाद स्थान खाली करते रहेंगे।

सायंकाल सूर्यास्त के साथ ही अखण्ड जप का समापन होगा, सायंकालीन आरती होगी। दूसरी ओर


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