तुम्हें अमर देखना चाहती है (Kahani)

August 1991

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पत्नी और बच्चों को अनाथ छोड़कर ही एक व्यक्ति घर से भाग निकला आत्म कल्याण के लिए। किसी संत के पास जाकर वह भगवत् प्राप्ति का उपाय पूछने लगा। उस व्यक्ति ने अपने त्याग की कहानी सुनाते हुये यों कहा-

मेरी पत्नी उस समय सो रही थी, एकाएक बच्चा चीखा तो मुझे लगा अब पत्नी जाग पड़ेगी और मेरा घर से निकलना कठिन हो जायेगा पर पत्नी ने बच्चे को छाती से लगाया बच्चा चुप हो गया। मैं चुपचाप निकल आया। महात्मन्! अब संसार की मोह माया में फँसना नहीं चाहता।

साधु बोले-मूर्ख दो भगवान तो तेरे घर में ही बैठे हैं, जिन्हें तू छोड़ आया। जा! जब तक तू उनकी सेवा नहीं करेगा, तब तक तेरा उद्धार नहीं। त्याग कर्तव्यों का नहीं अंतःकरण के विकारों का किया जाता है।

पर्व पर तुमसे कुछ अपेक्षाएँ हैं। आशा है तुम इन्हें अवश्य पूरा करोगे व हेमाद्रि संकल्प के साथ ही गुरु जी की भुजा, आँख व पैर बन जाने का संकल्प लोगे। यही आत्मा की हमारी वाणी है जो तुम से कुछ कराना चाहती है, इतिहास में तुम्हें अमर देखना चाहती है। देखना है कितना तुम हमारी बात को जीवन में उतार पाते हो।

हमारी बात समाप्त।


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