संयोगों से परे एक बुद्धिमत्तापूर्ण सत्ता

August 1991

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इस संसार में कोई भी वस्तु निरुद्देश्य अथवा निरर्थक नहीं है। मनुष्य के क्रिया-कलाप इस स्तर के हो सकते हैं, पर जहाँ विवेकशील सृष्टा की बात आती है, वहाँ उसके संबंध में यह नहीं कहा जा सकता कि मात्र कौतूहल उत्पन्न करने के लिए यह कौतुकपूर्ण संरचना उसने गढ़ी है। सच्चाई तो यह है कि उसकी विवेक-बुद्धि मनुष्य से इतनी अधिक है कि उसकी इंजीनियरी मनुष्य की छोटी बुद्धि की समझ में आती ही नहीं। उसके जो क्रिया-कलाप मानव की स्थूल-बुद्धि समझ लेती है, उसे तो मनुष्य सामान्य और सुविज्ञात कह कर पुकारने लगता है, पर जो समझ के परे होता है, उसे रहस्य, रोमाँच की संज्ञा दे देता है। संसार भर में ऐसी कितनी ही ज्ञात प्रकृतिगत रचनाएँ है, जिन्हें समझ नहीं पाने के कारण इसी श्रेणी में रख दिया गया है।

आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड की सीमाएँ जहाँ एक दूसरे से मिलती हैं, वहाँ एक ऐसी विशाल चट्टान है, जिस पर यदि कोई व्यक्ति चढ़ जाये, तो वह काँपने लगती है और इसी के साथ एक विचित्र ध्वनि भी निकलने लगती है और इसी के साथ एक विचित्र ध्वनि भी निकलने लगती है। बताया जाता है कि बहुत पहले उस क्षेत्र के राजा ने उस पर एक महल बनवाया था। सूख साधनों के लिए थोड़े-थोड़े समय तक के लिए उसमें निवास करता था। आज किसी इमारत का चिन्ह वहाँ मौजूद नहीं है, किन्तु उस शैल खण्ड को अभी भी यथावत देखा जा सकता है। विश्व के कई देशों के वैज्ञानिकों ने उसका गहन पर्यवेक्षण किया है, पर किसी की समझ में नहीं आया कि उस पर सवार होते ही यह कम्पन व ध्वनि उत्पन्न क्यों करने लगती है?

ऐसे ही दक्षिण कोरिया के पूर्वी किनारे पर स्थित तुँग सू नदी के तट पर एक विशाल चट्टान है। चीन ने जब उस राज्य पर आक्रमण किया था, तो वहाँ का राजा पराजित हो गया। उसे बंदी बना लिया गया। उसकी सात रानियाँ थी। अपमान से बचने के लिए उन सबने एक साथ समीपवर्ती नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली। तब से हर वर्ष तटवर्ती चट्टान में फूल के सात पौधे उगते हैं। धीरे-धीरे वे बढ़ते है, उनमें फूल आते हैं और घटना के दिन सभी फूल एक साथ नदी जल में गिर जाते हैं। प्रति वर्ष इस घटना को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग वहाँ इकट्ठे होते हैं व प्रकृति की इस अद्भुत घटना को घटते अपनी आँखों से देखते हैं। पता नहीं क्यों प्रकृति उस घटना को अविस्मरणीय बनाना चाहती है। उपस्थिति लोगों की समझ में यह भी नहीं आता कि किसी पत्थर पर पौधे कैसे उग आते हैं? वह भी एक ही किस्म के एवं संख्या में सिर्फ सात, फिर वर्ष के एक निश्चित दिन ही क्यों झड़ जाते हैं, यह सब कुछ रहस्य बना हुआ है।

मोरक्को के उत्तरी भाग के एक गाँव में दो ताड़ के पेड़ आस-पास खड़े हैं। बगल में एक बड़ा तालाब है। दिन के समय तो ये पेड़ सीधे-खड़े रहते हैं, किन्तु ज्यों-ज्यों सूर्य ढलता जाता है, ये पेड़ तालाब की ओर झुकने लगते हैं और जैसे ही वह अस्ताचलगामी होता है, ताड़ के पत्ते और वृक्ष के शीर्ष पानी में डूब जाते हैं, मानो संध्या वंदन के निमित्त स्नान कर रहे हों। फिर जैसे-जैसे रात गहराती जाती है, ये अपनी पूर्व स्थिति में आने लगते हैं तथा मध्य रात्रि तक सीधे खड़े हो जाते हैं। यह इनका प्रतिदिन का नियम है। ऐसा क्यों होता है? वनस्पतिशास्त्री अब तक इसका कारण नहीं जान पाये हैं।

इजराइल अधिकृत लेबनान की गोलान पहाड़ियों में प्रकृतिगत एक ऐसी गुफा है, जिसमें यदि कोई मनुष्य अथवा जानवर प्रवेश करता है, तो उसकी छत की एक दरार से पानी के फव्वारे छूटने लगते हैं। आश्चर्य तो यह है कि उस जानवर अथवा व्यक्ति के बाहर निकलते ही फव्वारे स्वतः बन्द भी हो जाते हैं। कई शोध दल प्रकृति के इस रहस्य को समझने हेतु वहाँ गए भी पर कारण जान पाने में सर्वथा विफल रहे।

वस्तुतः संयोगों व रहस्य रोमाँचों का कोई विधान भगवत् सत्ता की बनाई इस सृष्टि में नहीं है, हमें वैसा प्रतीत इसलिए होता है कि हमारी स्थूल बुद्धि प्रत्यक्ष के पीछे के सूक्ष्म रहस्य को समझ नहीं पाती है। नियंता कर्त्ता की बुद्धि की इसलिए सराहना की जानी चाहिए कि उसने मानव की शोध वृत्ति जिन्दा रखने के लिए यहाँ इस संसार में कुछ भी निरुद्देश्य नहीं बनाया है। यह सोचकर ही हम उस पर विश्वास सुदृढ़ करते हैं।


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