अभिशाप से छुटकारा (Kahani)

August 1991

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राजा जनक अपनी साज सज्जा के साथ मिथिला पुरी के राजपथ से गुजर रहे थे। उनकी सुविधा के लिए सारा रास्ता पथिकों से खाली कराने में राज कर्मचारी जुटे हुए थे। राजा की शोभा यात्रा निकल जाने तक राहगीरों को अपने आवश्यक कार्य छोड़कर जहाँ के तहाँ रुक जाना पड़ रहा था।

वहीं गुजर रहे थे अष्टवक्र। उन्हें भी रोका गया तो वे इन्कार कर गये। राज कर्मचारी उन्हें समझाने लगे तो वे बोले-प्रजाजन के आवश्यक कार्यों को रोक कर अपनी सुविधा का प्रबन्ध करना राजा के लिए उचित नहीं। राजा अनीति करें तो ब्राह्मण का कर्त्तव्य है कि उसे रोके और समझावे। जिद कर अष्टवक्र राजा जनक के पास पहुँचे और उन्हें खूब लताड़ा। जनक ने अपनी गलती अनुभव की तथा ऐसे योग्य व्यक्ति को राज गुरु के पद पर नियुक्त किया।

मनुष्य आहार में असंयम बरत कर और मस्तिष्क को उद्विग्न रखकर स्वयं ही जराजीर्णता को आमंत्रित करता है और जीवनी शक्ति के भण्डार को अनावश्यक रूप से खर्च करके सरल संभव आयुष्य का आधा-अधूरा ही उपयोग कर पाता है। स्वास्थ्य रक्षा के नियमों का पालन करने और मानसिक संतुलन बनाये रखने पर सहज ही स्वस्थ दीर्घ जीवन का लाभ उठाया और अकाल मृत्यु तथा जरा जीर्णता के अभिशाप से छुटकारा पाया जा सकता है।


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