जन्मेजय ने नाग यज्ञ किया। आहुति दी जाने लगी सर्प खिंच-खिंच कर कुण्ड में पड़ने जलने लगे।
तक्षक भागा। इन्द्र से लिपट गया। तक्षक की आहुति पड़ी तो इन्द्र सहित वह खिंचने लगा। न इन्द्र ने तक्षक को छोड़ा न तक्षक ने इन्द्र को।
दोनों की आहुति पड़ने से यज्ञ नष्ट होता था। फलतः उस कृत्य को रोक दिया गया। दोनों बच गए। महान् के साथ जुड़ जाने पर क्षुद्र का भी बेड़ा पार होता है।