नौ दिवसीय साधना सत्रों की रूपरेखा

May 1987

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ढर्रे के जीवन में, कोल्हू के बैल की तरह लगे रहना जिन्हें नहीं रुचता, उन्हें दृष्टिकोण बदलना होगा। वे भौतिकता को ही सब कुछ न मान लें, अध्यात्म विज्ञान पर भी उचित ध्यान दें। यही वह मार्ग है जिससे अभावों से ऊपर उठकर उल्लास की, बन्धन मुक्ति और स्वर्गीय सुख की अनुभूति हो सकती है।

अक्सर शिकायत मिलती है कि उपासनाएँ सफल नहीं होतीं, मनोकामनाएँ पूरी नहीं हो पाती। अध्यात्म पर यह कलंक उनने लगाया हैं जो खेत तैयार किए बिना ही बीज बोने और फसल काटने की जल्दबाजी करते हैं। आत्मशोधन की उपेक्षा और पूजा-पत्री को ही सब कुछ मान लेने से ऐसी स्थिति पैदा होती है। सही ढंग से चला जाय, तो अध्यात्म से वे सब लाभ आज भी उठाये जा सकते हैं, जो कभी पढ़े या सुने गये हैं। पूज्य गुरुदेव का निजी अनुभव भी हम सबके सामने हैं।

सोचा गया है कि प्रज्ञा परिजनों में से किसी के मन में अध्यात्म विज्ञान के प्रति शिकायत न रहने पाये। अब तक अपनाये गये क्रम और उसकी असफलता की दुहाई देने की अपेक्षा समग्र साधना का क्रम नये उत्साह के साथ, श्रद्धा विश्वासपूर्वक अपनायें। इन साधना सत्रों में निर्धारित साधनाओं का पूरा-पूरा लाभ प्राप्त करें।

नवीन साधना क्रम नौदिन में 24000 गायत्री जप के अनुष्ठान के साथ जोड़कर रखा गया है। यह प्रति माह 1 से 9, 11 से 19 तथा 21 से 29 तक चलेंगे। गायत्री जप अनुष्ठान के साथ तीनों शरीरों से सम्बद्ध कमल चक्रों का ध्यान-योगत्रयी के रूप में जुड़ा रहेगा। प्राणाकर्षण प्राणायाम तथा आत्मदेव की साधना भी अनिवार्य साधनाओं में रहेगी। प्रातःकाल विश्व कुण्डलिनी योग का विशेष ध्यान भी कराया जायेगा। तप साधना में आश्रम अनुशासन, हविष्यान्न तथा अमृताशन का एक बार आहार, गंगाजल पान, प्रातः मौन जैसे सुगम परन्तु प्रभावशाली क्रम अपनाने होंगे। लोक मंगल के लिए किया जाने वाला सुनिश्चित पुरुषार्थ भी तप और प्रायश्चित इच्छापूर्ति का माध्यम बनेगा।

साधनाएँ घर पर भी की जा सकती है, परन्तु वातावरण की अनुकूलता का लाभ मिलने पर साधक का संकल्प अपनी पिछली आदतों को काबू करने में ढर्रे को बदलने में अधिक सफल हो पाता है। गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्त ऋषियों की तपस्थली, दिव्य वातावरण, समर्थ संरक्षण, उपयुक्त परामर्श आदि की सुविधाएँ गायत्री तीर्थ में विशेष रूप से हैं। इसलिए जो परिजन समय निकाल सकें उन्हें किसी साधना सत्र की स्वीकृति मँगा लेनी चाहिए। अपने परिचित, संबंधियों सत्पात्रों को भी इसकी जानकारी देनी चाहिए तथा जिनमें उमंग जगे, उनके भी आवेदन भिजवाकर स्वीकृति मँगा लेनी चाहिए।

प्रज्ञा परिवार बहुत बड़ा है। शान्ति-कुँज में स्थान सीमित है। एक बार में उतने ही व्यक्तियों को स्वीकृति दी जायेगी जितनों की व्यवस्था ठीक से की जा सके। इसलिए परिजनों को क्रमशः अपनी पारी की प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी।

आवेदन पत्र हाथ में लिखकर भेजे जायेंगे। उसमें पूरा नाम, पूरा पता, आयु, जन्म-जाति, शिक्षा, व्यवसाय आदि लिखे जायेंगे। किस माह के किन सत्रों को प्राथमिकता देना चाहते हैं? यदि उन सत्रों में स्थान होगा तो उन्हीं सत्रों में अन्यथा निकटवर्ती किसी सत्र में स्वीकृति दी जायेगी। आवेदन के साथ सत्रों के अनुशासन पालने का आश्वासन होना चाहिए। कोई ऐसा रोग नहीं होना चाहिए, जिसके कारण सत्र साधना अथवा किन्हीं के साथ ठहरने में स्वयं को कठिनाई या दूसरों को ऐतराज हो। प्रत्येक आवेदन अलग हो। एक आवेदन पर बहुतों के नाम लिखना पर्याप्त नहीं। प्रत्येक व्यक्ति के विवरण की समीक्षा करके, उन्हें उपयुक्त पाये जाने पर ही स्वीकृति भेजी जायेगी। घुमक्कड़ मनोभूमि के व्यक्ति जो साधना अनुशासन के प्रति गंभीर नहीं हों; वे साधना का माहौल बिगाड़ते हैं। इसलिए सुपात्रों के लिए ही स्वीकृति माँगी जाय। स्वीकृति देने में भी सावधानी बरती जायेगी।

परम पू. गुरुदेव ने देवात्मा भारत की समष्टि कुण्डलिनी के जागरण का संकल्प लिया है। उसके लिए विशिष्ट रूप से इस युग में जन्मी आत्माओं को झकझोर कर जगा रहे हैं। जिन्होंने इस वर्ष के शतकुण्डीय यज्ञ देखे होंगे उन्हें यह विश्वास हो गया होगा कि किस तरह बिना बुलाये इन आयोजनों में भीड़ उमड़ रही है। लोगों का कहना है कि ऐसा लगता है जनसमूह को कोई अदृश्य शक्ति हाथ पकड़ कर ला रही है।

तीन वर्ष के कठोर साधना से उनका स्थूल शरीर तो क्रमश हुआ है; पर तीनों शरीर-सुदर्शन चक्र की तरह अत्यधिक सक्रिय हो उठे हैं। उनके सूक्ष्म शरीर की प्रौढ़ता चमत्कार अगले 15 वर्षों तक लोग अपने चक्षुओं से ................ देखेंगे। कारण शरीर के प्रभाव से वे भारत ही नहीं समूचे विश्व की विचारणा आस्था को बदल कर रख देंगे।

जिस अभिनव सृष्टि की संरचना की जा रही है उसका सूत्रधार तो अपना गायत्री परिवार ही है। इसमें उन आत्माओं का अवतरण हुआ है, जो अगले दिनों अपनी आत्म शक्ति से युग को नेतृत्व प्रदान करेंगी और लोगों का आध्यात्मिक, धार्मिक मार्गदर्शन करेंगी। यह कार्य वे अपने वर्तमान स्तर और एकाकी बल-बूते पर नहीं कर सकते। उन्हें जिस तप साधना की अनिवार्य आवश्यकता है, उसी के लिए यह नौ-नौ दिनों की अभिनव सत्र श्रृंखला प्रारम्भ की गयी है। सेनापति संगठन करता है और योजनाएँ बनाता है; पर लड़ने वाले तो सैनिक ही होते हैं। वे सेनापति की योग्यता वाले न हों तो न सही; पर उसके संरक्षण में युद्ध प्रशिक्षण तो उन्हें भी लेना पड़ता है। इन पंक्तियों में ऐसे सभी मनस्वी साधकों को युग नेतृत्व के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। वे अपने अन्तरंग में विद्यमान देवाधिदेव आत्म देव को पहचानें और उसे परिपुष्ट करने के लिये इन शिविरों में शान्ति-कुँज आयें।

सूक्ष्मीकरण साधना से पूज्य गुरुदेव ने इतनी अगाध शक्ति प्राप्त की है जिससे यहाँ न आ सकने वाले प्रज्ञा परिजन भी अपने घरों पर 15 मिनट की शक्ति संचार साधना (जिसका उल्लेख अप्रैल के अखण्ड-ज्योति में किया गया है) से लाभान्वित हो सकते हैं। सूर्योदय से आधा घंटे पूर्व से आधा घंटे बाद तक के समय में 15 मिनट शक्ति संचार के लिए नियत रखें। साधकों को प्राणाकर्षण प्राणायाम के साथ हिमालय के ध्रुवकेंद्र का ध्यान करना चाहिए। प्राण प्रवाह तेजी से दौड़ता हुआ आ रहा है। रोम-रोम में समा रहा है। तीनों कमल (स्थूल शरीर का नाभि कमल, सूक्ष्म का हृदय कमल तथा कारण का सहस्रार कमल) खिलते जा रहे हैं। 5-5 मिनट तीनों कमल जागृत करने का ध्यान करना चाहिए। इससे उन्हें न्यूनाधिक मात्रा में शान्ति-कुँज के साधना सत्रों में आने जैसा लाभ मिलेगा।

दैनिक जीवन में ज्ञानयोग की साधना गायत्री उपासना के रूप में, सप्ताह में एक दिन यज्ञ कर्मयोग की साधना और प्रज्ञा संकीर्तन भक्तियोग की साधना के अंतर्गत जहाँ भी प्रजा परिजन हों मिलकर चलाएँ। इससे देवात्मा भारत की महाशक्ति कुण्डलिनी का जागरण सुनिश्चित होकर रहेगा।


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