आत्म कल्याण (Kahani)

May 1987

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राहगीर को काशी जाना था। सो रास्ता चलते समय उसकी दृष्टि मील के पत्थर पर पड़ी। काशी उस पर खुदा था। राहगीर रुककर वहीं बैठ गया। आँख गलत नहीं हो सकती। प्रामाणिक लोगों ने लिखा है। काशी आ गई अब आगे जाने की जरूरत क्या रही?

कोई समझदार उधर से निकला और पत्थर के पास आसन जमाकर बैठने का कारण जाना तो कहा-पत्थर पर जिला भर अंकित है-काशी पहुँचना है तो पैरों से चल कर दूरी पार करनी होगी।

भोले व्यक्ति ने अपनी भूल मानी और बिस्तर समेट कर चल पड़ा। बात समझदारों को समझाया जाना कठिन है। वे शास्त्र पढ़ते और सुनते रहते हैं और सोचते रहते हैं इतने भर से धर्म धारणा का-आत्म कल्याण का उद्देश्य पूरा हो जायगा।


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