हमसे भी विकसित सभ्यता की सुनिश्चित सम्भावनाएँ

May 1987

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मनुष्य ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इतनी प्रगति कर ली है कि सौर मंडल के समीपवर्ती ग्रहों तक मानव रहित यान पहुँच चुके हैं। अगले दिनों मंगल, बुध, ग्रहों तक मनुष्य समेत यान भेजने की योजना है। हो सकता है किसी दिन आगे बढ़ते-बढ़ते लोक-लोकान्तरों तक यात्रा कर सकने वाले वाहनों का विकास करके वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड की, अभीष्ट ग्रह तारकों की, खोज-खबर लेने के लिए चल पड़ें।

मनुष्यों का किन्हीं अदृश्य लोकों तक पहुँचना और लोक-लोकान्तरों के बुद्धिमान प्राणियों का मनुष्य लोक के साथ संपर्क बनाने के लिए दौड़ लगाना आश्चर्यजनक तो लगता है, पर सर्वथा अविश्वस्त भी नहीं है। अंतर्ग्रही सभ्यता की खोज के लिए दशाब्दियों से चले आ रहे वैज्ञानिकों के अथक प्रयत्न अब सफल सिद्ध होते जा रहे वैज्ञानिकों के अथक प्रयत्न अब सफल सिद्ध होते जा रहे हैं। रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, पश्चिम जर्मनी, आस्ट्रेलिया और कनाडा के अन्तरिक्ष विज्ञान विशेषज्ञों के अनुसार आगामी 10 वर्षा में संभवतः इक्कीसवीं सदी आरंभ होने के पूर्व ही अपने सौर मंडल के अतिरिक्त अन्य सौर मंडल के ग्रह तारकों की सभ्यता का सरलतापूर्वक पता लगाया जा सकेगा। 4 जुलाई 1986 को फ्राँस के टोलोज शहर में अन्तरिक्ष अनुसंधानों की 26 वीं संगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें “सर्च फार इक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल इन्टेलीजेंट लाइफ” (एस.ई.टी.आई.) की योजना को क्रियान्वित करने के लिए कदम उठाने की चर्चा हुई। विश्व के लगभग 1340 वैज्ञानिकों ने इसमें भाग लिया। वैज्ञानिकों के सामूहिक प्रयत्नों के आधार पर ‘रेडियो स्पैक्ट्रम सर्वीलेंस सिस्टम’ नामक एक नयी तकनीकी का विकास किया गया है जो 1 से 10 जी.एच.जैड. (गेगाहर्ट) की दूरी की आवृत्तियों का मापन कर सकेगी। ग्रहों के अनुसंधान की यह एक स्वसंचालित प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति अथवा यंत्र उपकरण की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती। एस.ई.टी.आई. के मार्ग में आने वाले संभावित अवरोधों के तथ्य एवं प्रमाण इसी के द्वारा रिकार्ड किये जायेंगे। अन्तरिक्ष विज्ञानियों का कहना है कि सौर मण्डल से परे यदि कोई अन्य विकसित सभ्यता है, तो उसके साथ संचार-व्यवस्था का उपक्रम बिठाने में रेडियो तरंगों की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी। अन्तर्ग्रही सभ्यता संभवतः भूलोक से कहीं अधिक बुद्धिमान है। संचार व्यवस्था में वे रेडियो तरंगों का प्रयोग नहीं करते उनकी संचार प्रणाली बिलकुल भिन्न स्तर की है, जो आधुनिक विज्ञान की पकड़ में नहीं आ रही है। कुछ सभ्यताएँ ऐसी भी हैं, जिनकी वैज्ञानिक एवं तकनीकी जानकारी धरती के निवासियों से भी काफी पीछे है।

कार्नेल यूनिवर्सिटी (यू.एस.ए.) के डॉ. डे्रक के अनुसार यदि अन्य लोकों के बुद्धिमान प्राणी धरातल पर आते हैं तो हमें इससे भयभीत होने की तनिक भी आवश्यकता नहीं। वस्तुतः वे समर्थ एवं समुन्नत किस्म के प्राणी हैं। ऐसे लोगों की विशिष्टता ही यह है कि वे आवश्यकताएँ स्वल्प और उत्पादन अधिक रखते हैं, ताकि अपने लिए माँगने या चाहने की आवश्यकता ही न पड़े। वे दूसरों की सहायता करने, अनुदान, बरसाने हेतु ही यदा-कदा धरती पर आते रहते हैं।

जीव विकास के नवीनतम सिद्धान्तों के प्रतिपादन कर्त्ताओं के मतानुसार मानवी सत्ता किसी अन्य लोक से आई है। जिस लोक से आई हैं, वहाँ उसका विकास और भी ऊँचे स्तर का हो चुका होगा। अन्य लोकवासी अपनी उत्सुकता को भी मनुष्यों की तरह रोक नहीं पा रहे हैं और यहाँ की अधिक खोज-खबर लेकर तद्नुरूप अधिक सघन संपर्क बनाने की कोई योजना बना रहे हैं। उड़न तश्तरियों का दृश्य दर्शन संभवतः इसी श्रृंखला की कोई कड़ी हो। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् ही उड़नतश्तरियों का अस्तित्व प्रकाश में आया है। सर्वप्रथम वर्ष 1948 में अमेरिका की वायुसेना ने इसकी खोज की। खोजी दलों ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए बताया कि 90 प्रतिशत दृश्यों का संबंध अंतर्ग्रही सभ्यता के अस्तित्व की ओर इंगित करना है। सन् 1966 में एक और वैज्ञानिक मिशन की स्थापना हुई जिसने 59 उड़न तश्तरियों के प्रत्यक्षदर्शी प्रमाण प्रस्तुत किये। अधिक संख्या में प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा प्रत्यक्षतः देखी जाने के कारण उनका अस्तित्व झुठलाया जाना संभव नहीं। वैज्ञानिक इस संबंध में भले ही कुछ ठीक से न बता पाये हों, पर इतना तो अवश्य ही कहा जा सकता है कि जिस प्रकार पृथ्वी के वैज्ञानिक अन्य ग्रह नक्षत्रों की खोज के लिए समय-समय पर अपने उपग्रह भेजते रहे हैं, उसी तरह अन्य ग्रहों के निवासी भी पृथ्वी पर खोज के लिए अपने यान भेजते हैं।

सैकड़ों वर्षा से संसार के अनेकों देशों में उड़न तश्तरियों के विषय में समय-समय पर प्रमाण मिलते रहे हैं; किन्तु आश्चर्य यह है कि उनका रहस्य अभी रहस्य ही बना हुआ है। फ्राँस में पेरिस के सन्निकट चैटीलाँन नामक स्थान पर एक अन्तर्राष्ट्रीय बैंक है जिसमें उड़न तश्तरियों और विद्युत गेदों (फायर बाँल्स) की प्रामाणिकता से संबंधित आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं। लगभग 1000 प्रत्यक्षदर्शी प्रमाण यहाँ पर एकत्रित तो किये जा चुके हैं, पर यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि ये अद्भुत आकृतियाँ, वायुयान, उपग्रह, गुब्बारे हैं अथवा खगोलीय पिण्ड। 23 फरवरी 1986 को पश्चिमी यूरोप के हजारों लोगों ने कुछ दृश्य ऐसे भी देखे, जिनमें मात्र प्रकाश पुँज या वायुयान स्तर की कोई वस्तु आकाश में उड़ती, दिशा बदलती, डुबकी या छलाँग लगा रही थी। विशाल तश्तरीनुमा हरे रंग के प्रकाश से घिरे एक उड़ते वाहन के रूप में पश्चिमी जर्मनी, फ्राँस, बेल्जियम के लोगों ने इस अलौकिक दृश्य को नंगी आँखों से देखा।

उड़नतश्तरियों की भाँति फायरबाँल्स भी उन मनुष्यों को कोई हानि नहीं पहुँचाती जिनके समीप से वे निकलती या सटकर अपनी ऊर्जा अस्तित्व का छोटा मोटा प्रमाण देती जाती हैं। 2 दिसम्बर 1983 को सायंकाल रूप के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित काला सागर के समीप यूक्रेन में एक अद्भुत लम्बी पूँछ वाली चमकीली वस्तु को हजारों लोगों ने देखा। जनवरी 1984 में एक प्रकाश युक्त विद्युत गेंद अचानक दृष्टिगोचर होने लगी। रूसी प्रेस एजेन्सी तास ने इस घटना का रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि ‘सोवियत इल्यूशिन-18’ यान में बैठे यात्रियों ने नजदीक से देखा कि इस विद्युत गेंद से टकराने पर भी उनके विमान को किसी भी तरह की कोई क्षति नहीं उठानी पड़ी। इस भयानक दुर्घटना से स्वयं का बच जाना उनने दैवी अनुग्रह ही समझा। उड़नतश्तरियों को अन्तरिक्ष यान माना जाय तो विद्युत गेदें किसी अन्य लोक के सुविकसित एवं समुन्नत जीवधारियों का समूह या प्रभा मण्डल हो सकती है। 26 फरवरी 1984 को एक और विद्युत गेंद साइबेरिया के टोमस्क शहर पर चमकी देखी गयी। उससे नगर की सभी सड़कें और गलियाँ तुरन्त प्रकाशित हो उठीं। शोधकर्ताओं का एक दल मलबे के परीक्षण हेतु तुँगुस्का जंगल की ओर भेज गया। लेकिन वहाँ पर उन्हें कोई भी चीज देखने को न मिली। उनने अपनी रिपोर्ट में बताया कि यह एक ज्वलनशील गैसों का सघन सम्मिश्रण ही था।

अब कुछ ऐसे भी उदाहरण सामने आये हैं जिसमें इन उड़न तश्तरियों तथा विद्युत गेंदों ने विपत्तियाँ भी खड़ी की है। 30 जून 1908 को सेंट्रल साइबेरिया के सैकड़ों स्त्री-पुरुषों ने एक बेलनाकार वस्तु को आकाश में चमकाते हुए देखा और देखते-देखते वह प्रकाश अचानक विलुप्त हो गया। पृथ्वी उसी क्षण थर−थर काँपने लगी। काली वर्षा से सैकड़ों मील लम्बा क्षेत्र प्रदूषित हो गया। लन्दन का दिन रात्रि में बदल गया एवं भूकम्प के झटके मास्को से ब्लाडीवाँस्टक एवं पेरिस, न्यूयार्क तक महसूस किए गये। “द ग्रेट शिकागो फायर” नाम से एक भयावह विभीषिका अमेरिकावासियों को अभी भी याद है।

सामान्यतया ये सारे घटनाक्रम प्रकृति के विधि विधान के रूप में, परमसत्ता की व्यवस्था के हस्तक्षेप से मिले दण्ड के रूप में ही घटित हुए बताये जाते हैं। फिर भी इनके आकस्मिक प्रकटीकरण और विलुप्त होने के पीछे छिपी शक्तियों का पता लगाना अनुसंधान का विषय है। इससे हम लोकोत्तरवासियों की योजनाओं और क्रिया–कलापों को भी समझ सकेंगे व उनसे संपर्क स्थापित कर संभवतः अपने ज्ञान की अपूर्णता को पूर्णता में बदल सकने में समर्थ होंगे।


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