एक उदारमना व्यक्ति ने अपनी सम्पदा परमार्थ प्रयोजनों के लिए दान कर दी और लोक सेवा के कार्यों में निरत रहने लगा। उसकी सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। इस परिवर्तन के लिए लोग उसकी भूरि-भूरि सराहना करते और बधाई देने आते।
उत्तर में उदार व्यक्ति एक प्रश्न करते-आपके झोले में कंकड़ पत्थर हों और अनायास कोई बहुमूल्य वस्तु मिल तो उन पत्थरों को फेंक कर मूल्यवान वस्तु उसमें भरेंगे या नहीं? लोग उत्तर में शिर हिला देते। उदारमना समझाते मैंने कोई त्याग नहीं किया, मात्र समझदारी का परिचय दिया है जो व्यर्थ बटोर रखा था वह बोझ बढ़ाता। अनर्थ सिखाता।
अब उस जंजाल के फेंक देने पर मनःस्थिति परमार्थ करने जैसी बन गई और वे कार्य हो सके जिनकी प्रशंसा आप सब करते हैं और मुझे सन्तोष पाने तथा भविष्य उज्ज्वल बनाने का अवसर मिलता है।