पृथ्वीवासी विलुप्त क्यों होते हैं

May 1987

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किंवदंतियां आकाश-पाताल को एक कर सकती हैं और तिल का ताड़ बना सकती हैं। ये भैंस को मक्खी जैसे छोटे रूप में बता सकती हैं, पर यथार्थता की जाँच पड़ताल करने पर वस्तुस्थिति स्पष्ट होने में भी देर नहीं लगती। इसके विपरीत वास्तविकता पर आधारित तथ्य ऐसे भी होते हैं, जो आश्चर्यचकित करने वाले, समझ में न आने वाले होते हुए भी जाँच पड़ताल की कसौटी पर खरे उतरते हैं। उनका स्वरूप और कारण समझ में न आने पर भी जो घटित हुआ है, उनसे इन्कार नहीं किया जा सकता।

इतिहास के पृष्ठों पर कुछ ऐसी ही घटनाएँ हैं, जिनमें बताया गया है कि कुछ व्यक्ति या उनके समूह देखते-देखते अदृश्य हो गये। उनके साथ का सामान उसी स्थान पर मौजूद था, पर शरीरों का पता न चला कि वे कहाँ गए? किधर उड़ गए, कहाँ समा गए? जहाँ तक खोज का संबंध है, वहाँ तक कोई संभावित उपाय ऐसा न रहा, जो सोचा या खोजा न गया हो।

स्पेन सरकार को एक युद्ध लड़ना था। जॉन राँस के नेतृत्व में एक बड़ी सेना मोर्चे पर भेजी गई। सेना की छोटी-छोटी टुकड़ियों बना दी गयीं और उन्हें अलग-अलग दिशाओं में भेजा जा रहा था, ताकि दुश्मन के चारों ओर घेरा डाला जा सके। जिस टुकड़ी में पन्द्रह सौ जवान थे, वह अचानक गायब हो गई। न कैम्प, में वापस पहुँची, न उसके मरने-पकड़े जाने-घायल होने आदि की कोई खबर ही मिली। भाग खड़े होने, शत्रु से मिल जाने जैसी आशंकाएँ भी खोज करने पर निर्मल साबित हुई। उनके पदचिह्न भी किसी ओर नहीं जाते थे, जिनके आधार पर पीछा किया जा सके। असमंजस मुद्दतों चलता रहा और शताब्दियाँ बीत जाने पर भी वह रहस्य ज्यों का त्यों बना रहा। यह विवरण “हिस्ट्री ऑफ वण्डरफुल इवैण्ट्स” में विस्तारपूर्वक छपा है। “एनसाइक्लोपीडिया विजय ऑफ स्प्रिचुअल वर्ल्डस्” में जिसे इमेनुअल स्वीडन बोर्ग ने अपने अनुभवों के आधार पर लिखा था, इस व ऐसी ही अनेक घटनाओं का वर्णन हैं।

ऐसी ही एक घटना फ्राँस की एक टुकड़ी के साथ घटित हुई, जो जर्मन चौकी पर हमला करने गई थी। वाकया सन् 1856 का है। एक हल्की-सी आँधी आई और उसी अन्धड़ में 645 सैनिक लुप्त हो गये। अन्धड़ छोटा-सा ही था। थोड़ी देर ही रहा। इसने हल्की वस्तुओं की उलट-पुलट भर की। कोई बड़ा पेड़ तक उसके दबाव से न गिरा, पर आश्चर्य यह कि उसी बीच यह इतनी बड़ी सैनिकों की टुकड़ी गायब हो गई। इस आश्चर्यजनक घटना के संबंध में जो कारण हो सकते थे, वे सभी सोचे गये। जो कुछ खोज बीन के लिये किया जा सकता था, वह सब कुछ किया गया। पर कहीं किसी प्रकार का सुराग हाथ न लगा। अब तक उस घटना को फ्राँस के जाँच पड़ताल विभाग की फाइल में सुरक्षित रखा गया है।

लन्दन के एक साँसद विक्टर प्रेशर का भी ऐसा ही प्रसंग है। घटना सन् 1920 की है। वे अपने घर से भले-चंगे निकले ही थे कि कुछ ही मिनटों में लुप्त हो गये। तुरन्त तहलका मच गया। दुर्घटना आदि की पुलिस दफ्तरों से जानकारी पूछी गयी। आत्म हत्या, विदेश यात्रा, रूठ बैठने जैसा कोई प्रसंग न था। फिर वे लुप्त हुए तो कहाँ गए, कैसे गए? कुछ जाना नहीं जा सका। अपहरण जैसा भी कुछ न था। रंजिश का बदला लेने जैसी भी कोई कड़ी नहीं जुड़ती थी। जिसने इस प्रकरण को सुना, हैरत के अतिरिक्त और कुछ अनुमान न लगा सका। यह मामला भी फाइल में बन्द होकर रह गया।

सन् 1950 की बात है। पोलैण्ड के एक पादरी कैनरी बातिस्को घर से मित्र के यहाँ जाने के लिए निकले। मित्र का घर पास में ही था। वहाँ तक पहुँचने के लिये कुछ ही मिनट लगने चाहिए थे। पर जब देर हुई तो पता लगाया गया। सारे तरीके खोज बीन के पूरे कर लिये गए, किन्तु कोई हल न निकला। अप्रसन्न होकर घर से चले जाने या दूसरी किसी प्रकार की कोई सम्भावना नजर न आई। वह खोज तब से लेकर अब तक अनसुलझी पहेली ही बनकर रह गई है। उसका कहीं कोई ऐसा सूत्र न मिला, जिससे किसी संभावना का तालमेल बिठाया जा सके।

एक ऐसी ही घटना चीन में सन् 1939 में घटित हुई। उन दिनों चीन और जापान में युद्ध चल रहा था। चीनी सेनाएँ आगे बढ़ रही थी। तीन हजार सैनिकों का एक पड़ाव नानकिंग के समीप पड़ा। केन्द्र से उसका जो संचार संबंध था, वह अचानक टूट गया। खोज करने पर सैनिकों के हथियार आदि तो मिले पर सैनिक एक भी नहीं मिला। उन्हें धरती निगल गई या अंतरिक्ष से कोई दैत्य उन्हें उठा ले गया, ऐसा लगने लगा। इसका कारण क्या हो सकता है? सैन्य अधिकारी इस संबंध में अवाक् थे। ढूँढ़ने के सभी तरीके अपनाये गये, पर कोई सूत्र ऐसा न मिला जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकला जा सके कि सेना के इतने बड़े समुदाय का आखिर हुआ क्या?

शार्ट रेडियो वेब्स के समष्टि में विस्तार की प्रक्रिया पर शोध करने वाले डॉ. हर्बर्ट गोल्डस्टाइन ने अपने विचार विलुप्त हुए व्यक्तियों के संबंध में व्यक्त करते हुए लिखा है कि अंतरिक्ष में यदा-कदा उठने वाले विद्युत चुम्बकीय तूफान इसका कारण हो सकते हैं। एच.जी. वेल्स जो साइंस यूटोपिया पर अपने उपन्यासों के लिये प्रख्यात हैं, ने “द इनविजिवल मैन” पुस्तक में ऐसे आधारों को सूत्र रूप में प्रस्तुत किया है, जिनमें प्राणियों, मनुष्यों, वस्तुओं के अदृश्य होकर विशाल अन्तरिक्ष में कहीं चले जाने की यथार्थता का प्रतिपादन है। वारमूडा त्रिकोण के संबंध में यह तथ्य सर्वविदित है कि इस क्षेत्र में कितने ही जलयान, वायुयान अन्तरिक्ष के गर्भ में समा चुके हैं। ढूँढ़ने पर भी उनका कुछ अता-पता न लगा कि कौन उन्हें किस लोक में खींच ले गया?

अन्तरिक्ष के संबंध में अब यह तथ्य प्रकट होते जाते हैं कि वह मात्र पोली नीलिमा भर नहीं है। उसमें ग्रह-गोलक तो विद्यमान हैं ही। इसके अतिरिक्त अणुओं-तरंगों की भी उसमें भरमार है। उन्हीं के कारण दृश्य जगत में ही विभिन्न प्राणी और पदार्थ बनते हैं। उनमें से कुछ मनुष्य को चर्मचक्षुओं से दीख पड़ते हैं, कुछ अदृश्य ही रहते हैं। वायरस बैक्टीरिया इसी में आते हैं। रंगों की संख्या 400 से भी अधिक हैं, पर मनुष्य की आँखें उनमें से मात्र 40 के अलगभी ही देख पहचान पाती है।

वायु से जीवधारी प्राण खींचते हैं। पौहारी बाबा अन्य सिद्ध पुरुषों के वे आख्यान प्रख्यात हैं, जिनमें निराहार रह कर उन्हें ब्रह्माण्डीय प्लाज्मा पर ही जीवित एवं विभूति सम्पन्न बताया गया है। इसी ईथर भरे पोले घटाकाश में से सर्प विष और शार्क बिजली की बहुलता खींच लेती है। इसी विराट् अंतरिक्ष में ऐसे विवर (ब्लैक होल) पाये गये हैं, जिनमें विद्युत चुम्बकीय प्रवाह बड़े सघन अनुपात में हो है। इनमें प्रवेश पाने या बलात खींच लिये जाने पर कोई भी पदार्थ या जीवधारी प्रकाश-गति से उन क्षेत्रों में पहुँच सकता है, जहाँ अपने ढंग की अनोखी दुनिया है। उनमें सचेतन प्राणी भी रहते हैं और हमारी ही तरह अन्य लोकवासियों के बारे में बहुत कुछ जानना चाहते हैं। वे मानवी विशेषताओं को देखते हुए उनसे मिलता-जुलता वंशानुक्रम चलाने के लिए प्रयत्नशील हो सकते हैं। ऐसे ही किन्हीं प्रयोगों के लिए अंतरिक्ष वासी सत्ताएँ यदि इस लोक के प्राणियों को उठा ले जाती हों तो उसे सर्वथा असम्भव नहीं कहा जा सकता। दृश्य और अदृश्य जगत के बीच आदान-प्रदान चलते रहने की संभावना को यदि सही माना जाय तो मनुष्यों-पदार्थों के विलुप्त होने का रहस्य समझा जा सकता है।


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