”मन ऐसा ही बहुमूल्य घोड़ा है (Kahani)

May 1987

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एक रईस ने एक घोड़े की बहुत प्रशंसा सुनी, सो उसने उसे खरीदने का निश्चय किया और मुँह माँगा मोल देकर खरीद लिया। घोड़ा बहुत चतुर था। उदाहरण उसने प्रत्यक्ष देखा मालिक पीठ पर से गिरा तो उसने उसे सहारा देकर उठाया, पीठ पर बिठाया और डॉक्टर के यहाँ पहुँचाया।

बहुत दिन बाद संयोगवश वैसी ही दुर्घटना उस रईस के साथ घटी। वह घोड़ा दौड़ाते हुए गिर पड़ा। घोड़े ने उसे उठाया पीठ पर बैठाया और डॉक्टर के यहाँ पहुँचा।

पर अन्तर उसमें यह रहा कि उसे जानवरों के अस्पताल में पहुँचाया गया। घोड़ा उसी को जानता था मनुष्यों के डॉक्टरों से उसका वास्ता न पड़ा था। वहाँ पहुँचाता तो कैसे?

रईस इस प्रसंग की चर्चा कर रहा था कि एक सन्त ने कहा- ”मन ऐसा ही बहुमूल्य घोड़ा है, पर उसने वो सीखा होता है। वह करता है। खरीदने वाले को चाहिए कि उसे वह सिखाए जो कराना है।”


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