शंकर मित्र तब पाँच वर्ष के थे। बड़े प्रतिभावान। उस देश के राजा अचानक उनके गाँव में आ निकला। एक हँसोड़ लड़के को बुलाकर पूछा-तुमने क्या सीखा है? उसने अपनी बनाई एक कविता मधुर स्वर में गाई। फिर दूसरे की बनाई कविता सुनाने के लिए कहा गया। बालक ने पुरुष सूक्त के 16 मंत्र सस्वर सुना दिये और उनका अर्थ भी बताया।
राजा बहुत प्रसन्न हुए और बालक को उपहार में अपने गले का हार दे दिया। बच्चे की हार को माता को दिया। माता ने दाई को बुलाकर कहा-”मैंने वचन दिया था कि इस बालक की पहली कमाई तुझे दूँगी। सो यह हार लेले।” दाई ने इतना कीमती हार लेने से इनकार किया पर समझाने बुझाने पर उसने ले लिया, और उसे बेचकर एक तालाब सार्वजनिक उपयोग के लिए बनवा दिया। दरभंगा में वह दाई का तालाब अभी भी मौजूद है।