उन्नति नहीं, प्रगति अभीष्ट

December 1986

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उन्नति कर सकना कठिन नहीं है। नवजात शिशु बढ़कर छह फुट की ऊँचाई तक जा पहुँचता है। बरगद का नन्हा सा पौधा विकसित होकर बहुत बड़ी जमीन पर अधिकार कर लेता है। निर्दयी व्याघ्र वनराज कहलाते हैं। चींटियों के बिलों में सेरों अनाज जमा पाया जाता है। पहलवान और सरकस के खिलाड़ी ऐसे कृत्य करते हैं, जिन्हें देखकर चकित रह जाना पड़े। जेबकट भी अपनी जिन्दगी में लाखों के वारे-न्यारे करते हैं। चतुर व्यवसायी कोठियाँ खड़ी करते और मोटरों पर सफर करते हैं। लक्षाधीशों और अमीर सामन्तों की इस दुनिया में कमी कहाँ है?

उन्नति करने वालों की सूची बड़ी है। प्रतिस्पर्धा इसके लिए उत्तेजित करती है चतुरता आकाश के तारे तोड़कर साधन सम्पदा जमाकर लेती है। प्रतिभा और शिक्षा भी अभ्यास की वस्तु है। परिश्रमी और लगनशील उसे सहज ही अर्जित कर लेते हैं। दुनिया बड़ी तेजी से उन्नति की दिशा में बढ़ रही है। विज्ञान, बुद्धिवाद और अर्थशास्त्र सभी इस दिशा में सहायक हैं।

प्रगति शब्द का उपयोग आन्तरिक विभूतियों के सम्बन्ध में किया जाना चाहिए। अपने संबंध में संयम बरतने पर बचत का उपयोग सदुद्देश्यों के लिए उदारतापूर्वक किये जाने पर प्रगति बन पड़ती है। प्रगतिशील व्यक्ति में से ही देवता प्रकट होते हैं और प्रगतिशील समाज, समुदाय स्वर्गीय वातावरण का रसास्वादन करता है। मनुष्यता का दायित्व और लक्ष्य यही है भी।


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