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Akhand Jyoti
Year 1986
Version 2
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December 1986
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कोई वह करता है जो उसे नहीं करना चाहिए तो निश्चय ही वह भोगेगा जो उसे नहीं भुगतना पड़ता।
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Page Titles
उन्नति नहीं, प्रगति अभीष्ट
योग साधना की तीन धाराएँ
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परमात्मा की प्रतीक प्रतिनिधि– आत्मसत्ता
चैतन्य महाप्रभु (kahani)
समत्व कितना सम्भव कितना असम्भव
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आत्मज्ञानं परं ज्ञानम्
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स्वर्ग नरक इसी धरती पर विद्यमान
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शिव का तत्वज्ञान
राजसूय यज्ञ (Kahani)
दिव्य ज्योति दर्शन की ध्यान धारणा
द्रौपदी के स्वयंवर (Kahani)
सन्तों के वरदान और अनुदान
जिन्दगी का कारवाँ (Kahani)
श्रद्धा और अन्ध श्रद्धा
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आध्यात्मिक साम्यवाद का दिशाधारा
कलमी आदमी नहीं बन सकते!
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सुरदुर्लभ मनुष्य जन्म की सार्थकता
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आत्मसत्ता की तथ्य सम्मत प्रामाणिकता
संकल्प-शक्ति के द्वारा (Kahani)
काया में समाया- ऊर्जा का जखीरा
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अलौकिक शक्तियों का उद्गम- अन्तराल में
एकाग्रता के चमत्कारी सत्परिणाम (Kahani)
विश्वास और चिकित्सा
विज्ञात सम्पदा खोजी और खोदी निकाली जाय
उछालक का पुत्र (Kahani)
ज्योतिर्विज्ञान और वेधशालाएँ
अंतरिक्षीय रहस्यों का एक नया दौर
बिना किसी सोच-विचार के (Kahani)
मंगल ग्रह की दुर्दशा से हम सबक लें
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इक्कीसवीं सदी की भवितव्यताएँ - 4 - नारी की प्रतिभा उभरेगी- क्षमता निखरेगी
कंजूस सदा घाटे में रहते हैं। (Kahani)
एकता और समता का आदर्श
सतयुग लौटने वाला है।
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शेखसादी के नीति वचन
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सन्त इमर्सन के वैदिक विचार
हजरत उमर– उनके जीवन के कुछ प्रसंग
ब्रह्मविद्या जानने के लिए गुरु गृह में निवास किये (Kahani)
अंगकोरवाट जिसे अंधविश्वास व पलायन ले डूबा
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न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः
परोक्ष जगत का परिशोधन यज्ञों के माध्यम से
महात्माओं की संगति का चस्का (Kahani)
सत्साहस की सामर्थ्य
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अपनों से अपनी बात
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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