संकल्प-शक्ति के द्वारा (Kahani)

December 1986

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एक बार भगवान बुद्ध से उनके प्रिय शिष्य ने पूछा- ‘प्रभो! क्या संसार में ऐसी भी कोई वस्तु है, जो चट्टानों से भी अधिक कठोर हो? बुद्ध ने कहा- ‘हाँ’, लोहा है जो चट्टानों से भी कठोर है।’ शिष्य ने फिर पूछा- ‘क्या ऐसी भी कोई वस्तु है, जो लोहे से भी कठोर और मजबूत हो।’ बुद्ध ने कहा- ‘हाँ, अग्नि है। यह लोहे को भी पिघला देती है।’ शिष्य ने फिर पूछा- ‘अग्नि से भी बढ़कर कौन सी वस्तु है?’ बुद्ध ने उत्तर दिया- ‘पानी, जो अग्नि को भी बुझाने की सामर्थ्य रखता है।’

शिष्य की जिज्ञासा अब भी शान्त नहीं हुई। उसने पुनः प्रश्न किया- ‘पानी से भी श्रेष्ठ कोई वस्तु हो सकती है?’

बुद्ध ने कहा- ‘हाँ, वायु। वह जल के प्रवाह को बदल देती है। पानी बरसाने वाले मेघों को भी तितर-बितर कर देती है।’

‘शिष्य ने अन्त में पूछा- ‘प्रभो! क्या विश्व में ऐसी भी वस्तु है, जो वायु से भी बलवान् है, श्रेष्ठ है?’

बुद्ध ने उत्तर दिया- ‘हाँ, वह है मनुष्य की संकल्प-शक्ति। संकल्प-शक्ति के द्वारा मनुष्य वायु को भी अपने वश में कर सकता है। संकल्प-शक्ति के बल पर मनुष्य अनेक ऐसे महान् कार्यों को सम्पन्न कर लेता है, जो सामान्य लोगों के लिये आजीवन असम्भव जान पड़ते हैं।’


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