डेनमार्क के प्रख्यात मूर्तिकार थोवडिसन अपने समय के अद्वितीय कलाकार थे।
एकत्र मण्डली ने उनसे एक दिन पूछा- आपने किस गुरु से यह विद्या सीखी और किस विद्यालय में प्रवीणता प्राप्त की?
उत्तर देते हुए उनने कहा- आत्म समीक्षा ही ऐसा गुरु है और आत्म सुधार ही मेरा विद्यालय है। मैंने सदा अपनी कृतियों में त्रुटि खोजी और अधिक उपयुक्त बनाने के लिए जो समझ में आया उसे अविलंब अपनाया। इस अवलंबन को अपनाकर कोई भी सफलता के उच्च शिखर तक पहुँच सकता है।