उछालक का पुत्र (Kahani)

December 1986

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उछालक का पुत्र श्वेतकेतु जब गुरुकुल से विद्या पढ़कर वापस लौटा तो पिता ने पुत्र से  पूछा- क्या तुमने वह जान लिया जिसे जानने के उपरान्त सब कुछ जान लिया जाता है? श्वेतकेतु ने कहा- मेरे गुरु जो जानते थे वह उन्होंने बिना छिपाए बता दिया। पर उसमें वैसी जानकारी नहीं मिली जैसी कि आप पूछते हैं।

उछालक ने एक बीज दिखाते हुए पुत्र से पूछा- वृक्ष और पत्ता इसमें समाहित हैं, पर क्या तुम्हें वह दिखाई पड़ता है? श्वेतकेतु ने सिर हिलाते हुए इन्कार कर दिया।

पिता ने पुत्र को समझाया। दृश्य के मूल में अदृश्य की सत्ता काम करती है, वह अदृश्य आंखों से नहीं सूक्ष्मदर्शी विवेक से देखा जाता है। तुम ज्ञान चक्षुओं का उपयोग करो। अदृश्य को समझो और देखो। उसे जान लेने पर ही तुम उस ब्रह्म को पा सकोगे, जिसे देखने पर इस संसार का वास्तविक स्वरूप दिख पड़ता है।


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