न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः

December 1986

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प्रकृति का नियम है कि जो पुरुषार्थी है, ईमान की कमाई पर जीना पसंद करते हैं, उन्हें हर तरह से सहयोग मिलता है। किन्तु इस वैचित्र्यपूर्ण संसार में लुटेरों, मुफ्त का माल बटोरने वालों की कमी नहीं है। गढ़े खजानों, डूबे जहाजों में छिपे स्वर्ण भण्डार इत्यादि की खोज आदिकाल से होती रही है। कई व्यक्ति अपनी पास की जमा पूँजी एवं जान तक गंवाते रहे हैं, फिर भी किसी ने सबक नहीं लिया। अभिशप्त सम्पदा को पाने के प्रयास लगभग असफल ही रहे हैं।

कोलम्बस “सोने की चिड़िया” भारत को खोजने निकला था पर पहुँच गया- बहामा, बारबेडोस एवं पोर्ट ऑफ स्पेन नाम वेस्ट इंडीज द्वीप समूह में। इतने ही क्षेत्र में चक्कर लगाकर स्पेन लौटकर उसने बताया कि वह प्रकृति एवं खनिज सम्पदा से भरपूर एक “नई दुनिया” का पता लगा कर आया है। यूरोप भर में चर्चा फैली और उस सम्पदा पर अधिकार जमाने हेतु कई देशों के गोरे चढ़ दौड़े और पश्चिम में जाने पर अमेरिका रूपी विशाल भूखण्ड का पता चला। उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका की खोज इन स्पेनी, ब्रिटिश पुर्तगाली लुटेरों के दुस्साहस भरे अभियान के कारण ही हो पाई। बाद में पता चला कि वह भूखण्ड मनुष्यों से खाली नहीं है। वहाँ के मूल निवासी रेड इण्डियन वहीं चिरकाल से मौजूद थे। “मय” एवं “इन्का” सभ्यता के अवशेष भी खोज निकाले गये।

भूमि के अनुपात से जनसंख्या कम होने के कारण उस स्थान को बीहड़ भले ही समझा गया हो, पर वस्तुतः वह वैसा था नहीं। वहाँ खनिज सम्पदा का बाहुल्य पाया गया। दक्षिण अफ्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका तक ऐसी पट्टी पाई गई जिसमें सोना ही सोना छिपा पड़ा था।

दक्षिण अफ्रीका पर तो इंग्लैंड मूल के गोरे मजबूती से जम बैठे और उस पर उन्होंने अपने पंजे गहराई तक घुसा दिये, पर दक्षिण अमेरिका पर कई देशों के गोरे छुट-पुट जमीनों की घेराबंदी करके मात्र अपने छोटे-छोटे अधिकार क्षेत्र ही बना सके। साधनों के सीमित व घने जंगल होने के कारण वे उत्तरी अमेरिका जैसे सम्पन्न भी न हो सके।

वीरान स्थानों के संबंध में दन्तकथाएं और किंवदंतियां परीलोक की कहानियों की तरह तेजी से फैलती हैं और उन पर विश्वास भी कर लिया जाता है। अफवाह यह पनपा कि दक्षिण अमेरिका के जंगलों में शुद्ध सोना कंकड़ पत्थरों की तरह बिखरा पड़ा है। उसे समेटने का कोई साहस कर सके, तो देखते-देखते धन कुबेर हो सकता है।

जहाँ-तहाँ पाये गये स्वर्ण खण्ड और हीरे-पन्ने इस अफवाह को बल देने के लिए काफी थे कि उस भूमि की ऊपरी परतों पर ही अपार सम्पदा विद्यमान है। उसकी खुदाई की जाय तो सोने के पर्वत हाथ लग सकते हैं। इस कल्पना को मान्यता स्तर तक पहुँचाने वाले कुछ प्रमाण भी मिल गये।

एल्डोरेडो के बारे में बाद में बताया गया कि वह क्षेत्र या नाम सोने के राजा का है, जिसके अधिकांश उपकरण सोने के थे और वह अपार स्वर्ण सम्पदा का स्वामी था। उस क्षेत्र में एक सोने की नाव व राजा की प्रतिमा भी पाई गई। वह बताती थी कि सचमुच ही यह क्षेत्र कभी स्वर्ण सम्पदाओं का अधिपति रहा होगा। विश्वास यह बना कि मनुष्यों के न रहने पर भी उस धातु वैभव का अस्तित्व तो यहाँ बना ही रहना चाहिए।

स्वर्ण नौका का मिलना था कि न केवल उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका में वरन् यूरोप के अन्यान्य देशों में भी यह कथा बिना पर लगाये उड़ गई। उससे खोजी दुस्साहसियों का जोश जगा और जो दक्षिण अमेरिका जैसे सुविधा रहित क्षेत्र में बसने की बात उपेक्षा में डाल चुके थे, उनने नये सिरे से अपना उत्साह उभारा और सोना बटोरने की अपनी-अपनी योजनाएं बनाने लगे।

सर्वप्रथम अमेरिका में पहले से बसे गोरों ने यह कार्य अपने हाथ में लिया। उन्होंने स्थानीय कुलियों और मार्गदर्शकों का महंगे मोल पर सहयोग प्राप्त कर सोने के बड़े-बड़े डले एवं पन्ने की किस्म के बहुमूल्य किस्म के पत्थर खोज निकाले। उपलब्धकर्ताओं ने प्राप्त सम्पदा का खूब प्रदर्शन किया। कल्पनाओं की उड़ान भरने वाले कुछ दुस्साहसियों ने योजना बनायी, कि स्थानीय आदिवासियों को मटियामेट कर वहाँ खोज-बीन की प्रक्रिया में सहयोग देने वाले व्यक्ति एवं साधन जुटाये जायें। मौका मिलने पर इन लालची व्यक्तियों की हत्या कर सारी सम्पदा कब्जे में कर ली जाये।

दक्षिण अमेरिका एवं मध्य अमेरिका से उपजा सोने की खोज का बुखार सारे यूरोप पर छा गया। खोजी दस्युओं की मण्डली बनने लगी। मार्ग व्यय एवं मशीनी साधनों के लिए कम्पनियाँ बनने लगीं। विभिन्न नागरिकता व वर्ग के लोक अपने-अपने लिए खोज का क्षेत्र निर्धारित करने लगे मतभेद व झंझट भी खड़े हुए पर वे जबर्दस्त की कमजोर पर जीत के आधार पर सुलझते भी रहे। खोजें इतनी अधिक हुईं कि उन सबकी गणना करना कठिन है। फिर भी कुछ बड़े दलों की सूचना तथा प्रतिक्रिया उपलब्ध है। “सीका” नामक झील के समीप सोने की नाव मिली थी। समझा गया कि उस झील में सोना होना चाहिए। ब्रिटेन तथा स्पेन वालों ने मिलकर इस क्षेत्र को गम्भीरतापूर्वक खोजा।

सोलहवीं सदी के आरम्भ से ही यह स्वर्ण की खोज का बुखार आरंभ हुआ और बीसवीं सदी के आरम्भ तक पूरे जोर-शोर से चलता रहा। आशा की केन्द्र बनी उस झील की तली में लाखों डालर कीमत की मशीनों द्वारा छेद किया गया और उसका पानी नीचे की दिशा में बहाया गया, पर पानी सिर्फ 15 फुट ही घट पाया। जो माल मिला वह इतना कम था कि उसे लागत की तुलना में सौवाँ भाग ही कहा जा सकता है। अन्यत्र भी छुट-पुट कुछ मिला, पर उतने भर से किसी भी मंडली का समाधान न हुआ। बड़े अभियानों को विशेष रूप से बड़े घाटे में रहना पड़ा।

कोलम्बिया के उत्तरी तट पर एक खोजी दल 900 व्यक्ति लेकर क्वेऐडो के नेतृत्व में अग्रसर हुआ। प्रकृति प्रकोप तथा रास्ते की कठिनाई के कारण लौटते समय मात्र 200 व्यक्ति शेष रहे और अन्य सब मर गये। घोड़ों और खच्चरों का काफिला भी ठिकाने लग गया, उसमें से भी इतने ही बचे जो मालिकों को लाद कर ठहराव केन्द्र तक बीमार हालत में वापस पहुँचा सके।

निराश लौटते हुए दलों ने जब नये जोशीले दलों को आते देखा तो उनकी आशा एक बार फिर जगी- सोचने लगे कि वह इनके साथी बन जायें। उनने अपना कमाया सोना उन्हें भेंट किया और अपनी खोज का अनुभव तथा निष्कर्ष भी बताया। साथ ही यह भी कहा कि उन्हें किस क्षेत्र में किन साधनों के साथ जाना चाहिए। सामग्री हेतु एक केन्द्र बना लेना चाहिए ताकि जरूरत के समय वहाँ से रसद-गोला-बारूद इत्यादि मंगाई जा सके। बात नपी तुली लगी सो उनने विश्वास कर लिया और सोचा कि इन थके अनुभवी लोगों को ही केन्द्र का रखवाला बना दिया जाय। निराश लोग तो यही चाहते थे। कुछ ही समय बाद उनने सामान को गायब कर दिया और जो कीमत हाथ लगी उससे अपने वतन लौट गये। इस प्रकार इन खोजियों को कई ओर से मार सहनी पड़ी। आदिवासियों की सिद्धहस्त तीरंदाज़ी सतत् उनके प्राण लेती रही। जंगलों में ठहरना और चलना शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत महंगा पड़ा। इसके अतिरिक्त निराश साथियों का लौटने के लिए आग्रह बढ़ता गया। सबसे बड़ी बात यह थी कि जिस आशा से धन कुबेर बनने की योजना लेकर चले थे उसका एक अंश भी पूरा न हो सका। कई व्यक्ति जान गंवा बैठे। इतना जरूर हुआ कि वनखण्डों में पुरातन काल के बने मंदिर-महल खंडहर रूप में दृष्टिगोचर अवश्य हुए जिसके आधार पर पुरातत्व अन्वेषकों को विदित हुआ कि अमेरिका सभ्य समुन्नत रहा है, पर अब तो वहाँ लुटेरों की ही तूती बोलती है। सोने की खोज असफल हुई।

पराई भूमि पर किये गये अतिक्रमण कभी सफल हो सकते हैं क्या? इस आशा और सम्भावना पर स्वर्ण खोजियों की असफलता ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया है, वस्तुतः सम्पदा जब अपनी कमाई हुई न हो तो उसको हस्तगत करने के लिये किये गए प्रयास कभी सफल नहीं होते। सृष्टा का बनाया यह नियम कभी टूटता नहीं।


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