अलौकिक शक्तियों का उद्गम- अन्तराल में

December 1986

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मनुष्य देखने में एक साधारण प्राणी प्रतीत होता है। उसका काय-कलेवर बन्दर से मिलता जुलता है। बोलने, सोचने और खोजने की विशेषताओं ने ही उसे प्रगति के उस स्तर तक पहुँचाया है, जिस पर कि आज वह है।

देखने में इन साधारण विशेषताओं से युक्त असंख्य मानव-प्राणी पाये जाते हैं। वे अपनी विकसित शरीर संरचना और मानसिक विकास की असीम संभावनाओं के कारण अपनी विभिन्न विलक्षणताओं के प्रमाण प्रस्तुत करते रहते हैं।

किन्तु गहराई से खोजा जाय तो प्रतीत होता है कि उनकी विदित क्षमताओं की तुलना में अविज्ञात सामर्थ्यों का भंडार और भी बड़ा है। सूक्ष्म शरीर की अलौकिकता को प्रत्यक्ष न होने के कारण झुठलाया भी जा सकता है। पर प्रत्यक्ष शरीर का विश्लेषण तो ऐसा है जिसे देखते हुए उसकी रहस्यमय संरचना से इनकार नहीं किया जा सकता।

अरबों, खरबों की संख्या में ज्ञानतन्तु शरीर के प्रत्येक क्षेत्र में, विशेषतया मस्तिष्क में भरे पड़े हैं। इनमें जो विद्युत प्रवाह बहता है, उसकी प्रत्यक्ष प्रतीति इसलिए नहीं हो पाती कि वह विकेन्द्रित रहता है। यदि उसे समेटकर एक केन्द्र पर केंद्रीभूत किया जा सके तो उससे इतनी बिजली बन सकती है जिससे एक बड़ा मिल चलाया जा सके। मस्तिष्कीय चिन्तन के आधार पर अनेक योजनायें बनतीं और कार्यान्वित होती हैं, तो भी प्रबुद्धों में पाई जाने वाली शक्ति समस्त क्षमता का एक बहुत छोटा अंश होती है। यदि उस सब को एकत्रित किया जा सके तो उससे कोई व्यक्ति देव दानव स्तर का बन सकता है। अपने शरीर की अपने संसार की और समस्त ब्रह्मांड की स्थिति के सम्बन्ध में ऐसी जानकारियाँ प्राप्त कर सकता है जिन्हें अलौकिक एवं अद्भुत कहा जा सके। ऋद्धि-सिद्धियों का वर्णन कपोल कल्पना नहीं है। उन्हें किसी अन्य का दिया हुआ अनुदान-वरदान भी नहीं कहा जा सकता। वे भीतर से ही उगती और प्रस्फुटित होती हैं। इसके लिए मूलभूत सामग्री उसे जन्मजात रूप में उपलब्ध है। प्रश्न केवल उन्हें जागृत करने भर का है। यह जागरण साधनाओं द्वारा संभव हो सकता है।

स्थूल शरीर की क्षमतायें प्रत्यक्ष हैं। उन्हें खेल प्रतियोगिताओं में, सर्कस में बढ़े-चढ़े रूप में देखा जा सकता है। पर सूक्ष्म शरीर की सामर्थ्य के बारे में उतनी सघन घटनायें प्रत्यक्ष देखने में नहीं आतीं। वे चिरस्थायी नहीं होतीं जिससे उनके अस्तित्व एवं प्रभाव का पर्यवेक्षण गंभीरतापूर्वक किया जा सके।

तिब्बत में सूक्ष्म शरीर को मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिकायें निभा सकने सम्बन्धी काफी प्रयत्न हुए हैं। इनका वर्णन ‘टिबेटन बुक ऑफ दी डेड’ एवं ‘सीक्रेट योग ऑफ टिबेट’ पुस्तक में विस्तारपूर्वक दिया गया है। एवं रूसी ग्रन्थ “हार्ट ऑफ एशिया” में तिब्बत तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में विद्यमान सूक्ष्म शरीरधारी शक्तियों के क्रिया-कलापों का महत्वपूर्ण विवरण है।

दृश्यमान स्थूल शरीर के आगे की सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर की शक्तियों एवं विभूतियों का वर्णन “दी प्रोजेक्शन आफ दी ऐस्ट्रल बाडी” में इस प्रकार किया गया है कि वैज्ञानिक एवं प्रत्यक्षवादी लोग भी इनके सम्बन्ध में सारगर्भित जानकारी प्राप्त कर सकें। इस संदर्भ में विधिवत् शोध कार्य फलोरिडा की “वर्ल्ड पैरासाइकालिजिकल रिसर्च फाउंडेशन” कर रही है।

प्रथम विश्वयुद्ध की एक घटना है कि एक समुद्री जहाज का बेड़ा जर्मनी पर हमला करने के लिए समुद्र के किसी अज्ञात क्षेत्र में जमा हो रहा था। जासूसों ने यह सूचना तो सेनापति तक पहुँचा दी पर वे यह न बता सके कि बेड़ा किस स्थान पर है।

इस हेतु अध्यात्मवेत्ता ‘डिवाइनर’ की सहायता ली गई। उसने समुद्र का पूरा नक्शा मँगाया। कुछ देर ध्यान करके उसने उस स्थान पर चिन्ह लगाया जहाँ बेड़े के होने की संभावना थी। उस क्षेत्र के लिए तुरन्त मुहिम भेजी गई।

सर विलियम बैरेट ने अपनी पुस्तक “दी डिवाइनिंग राड” में ऐसी घटनाओं का संग्रह करने के अतिरिक्त यह बताया है कि ऐसा क्यों कर होता है। वे कहते हैं कि प्रत्येक पदार्थ एवं प्राणी के परिकर से अपने-अपने ढंग की विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं। वे उड़कर आकाश में फैलती और मानवी चुम्बक के साथ टकराती हैं। संवेदनशील व्यक्ति उन्हें पकड़ और समझ लेते हैं कि यह संकेत कहाँ से आ रहा है और कहाँ कैसी स्थिति है।

इसी आधार पर भूगर्भ से कितनी ही धातु खदानें खोजी गई हैं और जल स्रोतों का पता लगाया गया है। यह शक्ति तत्वतः हर व्यक्ति में होती है, पर उसे विश्वासपूर्वक कार्यान्वित कर सकने की क्षमता विकसित कर सकना किसी-किसी से ही बन पड़ता है। किन्हीं में यह क्षमता जन्मजात रूप से अनायास ही प्रकट होती देखी गई है।

मार्टिन इंगले ने अपनी खोज-पूर्ण पुस्तक “दी एक्सपीरियन्स इन प्रोफेसी” में छानबीन करने के उपरान्त ऐसी घटनाओं का उल्लेख किया है जिनसे पता चलता है कि मनुष्य शरीर में कितनी अद्भुत दिव्य क्षमतायें विद्यमान रहती हैं। पर उन्हें विकसित और कार्यान्वित करने का अवसर किसी-किसी को ही मिलता है।

संकलित घटनाओं में कैलीफोर्निया के एक दंपत्ति द्वारा किसी हत्या का पूर्वाभास मिलने और उसकी सूचना पुलिस में नोट कराये जाने का उल्लेख है। वाल्टर नामक एक लेखक की पत्नी मैसी चाय बना रही थी। उसने भरे प्याले में एक फिल्म जैसा दृश्य देखा। एक हत्यारा दो व्यक्तियों की हत्या करके डाका मार ले गया। पुलिस ने मोटर साइकिल पर उसका पीछा किया। डाकू एक अधबनी झोपड़ी में घुस गया, जहाँ उसे धर दबोचा गया। यह अनुभूति पुलिस में दर्ज कराई गई तब उसे भ्रान्ति बताकर मजाक में उड़ा दिया गया। किन्तु पन्द्रह दिन भी बीतने न पाये थे कि घटना ठीक उसी प्रकार घटित हुई और पुलिस ने डाकू को लूटी गई सम्पत्ति के साथ धर दबोचा।

उपरोक्त पुस्तक एवं डॉ. थेल्मा मॉस की “द प्रोबेबिलीटी ऑफ इम्पासीबिल” पुस्तक में ऐसी चार सौ से भी अधिक घटनाओं का वर्णन है, जो अद्भुत हैं और जिन्हें जाँच पड़ताल के उपरान्त वैज्ञानिक मान्यता मिली है।

एक घटना सन् 1913 की है। तब वाइसराय ने अपना शासन तो दिल्ली में जमा लिया था पर वहाँ की गर्मी अँग्रेज मण्डली को रास नहीं आ रही थी। वे किसी ठंडी जगह को समीपवर्ती क्षेत्र में ही तलाश रहे थे। इस दृष्टि से उन्हें शिमला-कालका वाला क्षेत्र अनुकूल और निरापद लगा। वहाँ बसने के लिए रेल का रास्ता जरूरी था। अध पक्की सड़कों पर बसें तो चलने लगी थीं पर ऊँचे पहाड़ी मार्ग पर रेल निकालना टेढ़ी खीर थी। फिर भी निश्चय किया गया और काम चल पड़ा।

कुछ दिनों ही काम चला पर सही पैमायश न बन पड़ने के कारण आगे की ऊँचाई आड़े आ गई। लगने लगा कि रेल के छोटे इंजन इतनी ऊँचाई तक चल न सकेंगे। काम छोड़े बैठने में भी हेठी होती थी और उपाय भी कोई सूझ नहीं रहा था।

इस असमंजस से एक उसी काम में लगे हुए मजूर ने उबारा। वह पढ़ा लिखा तो न था पर तंत्र मंत्र में गति रखता था। उसने अपनी अन्तःप्रेरणा के आधार पर कहा- “आगे की छह मील जमीन पर सुरंग बना दी जाय तो समस्या हल हो जाएगी। इतनी लम्बी सुरंग बन पड़ेगी, इसका उस काम पर लगे हुए इंजीनियरों को भरोसा न हो रहा था। फिर भी उस मजूर मलखू के बहुत जोर देने पर काम चालू किया गया। आगे की कठिनाइयों में भी वह मार्ग-दर्शन करता रहा। साथ ही इस निमित्त पूजा पाठ के अनेक विधि विधान भी करता रहा। उसे साधारण कुली से पदोन्नत करके जमादार बना दिया गया। हर छोटी बड़ी कठिनाई का हल उससे पूछा जाता। मानो वह कोई बड़ा इंजीनियर हो। उसके दबाव देने पर सफलता हाथ लगती देख उस योजना में लगे हुए अंग्रेज भी उसके पूजा पाठ में सम्मिलित होते। निदान लम्बी अवधि में वह रेलमार्ग बन कर तैयार हुआ। उन दिनों उस सफलता का श्रेय मलखू को ही दिया जाता रहा। उसकी मंत्र विद्या किसी प्रवीण इंजीनियर की योग्यता से कम महत्व की सिद्ध न हुई।

अमेरिका के दक्षिण पश्चिम में फोनिक्स से कुछ किलोमीटर दूर स्थित माइकेलटाउन का वायुसेना का एक हवाई अड्डा जब बन्द किया गया तो उस देश में इन अफवाहों को और भी अधिक बल मिला कि वहाँ चित्र-विचित्र भुतही घटनाओं का अड्डा है। वहाँ चिनाटी पहाड़ियों की ढलानों पर संध्या समय रंग बिरंगी रोशनियाँ जलती बुझती दिखाई देती थीं। मैक्सिको से लगे टेक्सास राज्य में कितनी ही जगह इन जलती बुझती रोशनियों ने आतंक पैदा कर दिया। यह रोशनियाँ कई बार जीप गाड़ियों और यात्रियों का पीछा करती देखी गईं। एक बार तो उनने कई जीपों को इस प्रकार जला दिया मानों वे तेज आग की भट्ठी में पिघला दी गई हों। इन रोशनियों की खोज में निकला एक वैज्ञानिक दल ही विलुप्त हो गया। इस हेतु बनाया गया एक शोध संस्थान ही जल कर खाक हो गया। ऐसे घटना प्रसंगों का कोई विज्ञान सम्मत समाधान नहीं मिलता। पर उससे परोक्ष जगत के रहस्यमय एवं अति शक्तिशाली क्रियाकलापों की झलक मिलती है। सूक्ष्म शरीरधारी आत्माएं संभवतः “आदमी” नामक इस असभ्य जीव को वहाँ बसने नहीं देना चाहती थीं।

सोवियत रूस के क्रीव प्रान्त के चेरनोबिल संयंत्र में अचानक आग, अणु आयुधों से भरी रूसी पनडुब्बी का डूबना एवं चंद्रमा पर पहुँच जाने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों द्वारा अन्तरिक्ष में उपग्रह छोड़ने की लगातार चार असफलताओं से भी यह लगता है कि कोई परोक्ष सत्ता इन विनाशकारी कृत्यों को रोक रही है।

ब्रह्मांड जड़ पदार्थों से ही भरा हुआ नहीं है। उसमें सचेतन का भी बहुत बड़ा भाग है। यह सचेतन मनुष्य की ओर आकृष्ट होता है या उसे अपनी ओर आकर्षित करता है। दोनों पक्षों में आदान-प्रदान की भी आकाँक्षा रहती है। इसलिए मिलन की आतुरता सिद्ध करने वाली कितनी ही घटनाएँ भी घटित होती रहती हैं। यदि इन उभय-पक्षीय प्रयत्नों को निष्फल न जाने दिया जाय तो ब्रह्मांडीय चेतना के अनुदानों से मनुष्य अपने आप को देवोपम सामर्थ्यों से भरा पूरा बना सकता है।


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