आत्मसत्ता की तथ्य सम्मत प्रामाणिकता

December 1986

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शारीरिक बनावट की दृष्टि से सभी मनुष्य प्रायः एक जैसे होते हैं, किन्तु अंतस् के स्तर में भारी अन्तर पाया जाता है। आन्ध्र हैदराबाद का एक बारह वर्षीय बालक ऐसी प्रांजल संस्कृत धारा प्रवाह से बोलता था, मानो वह उसे मातृभाषा के रूप में जन्मजात मिली है। इसी प्रकार कितने ही बालक बिना कारीगर शिक्षा पाये ऐसे कला कौशल का, बुद्धि चातुर्य का परिचय देते पाये गये हैं, जिससे प्रतीत होता है कि इन विभूतियों का अनुदान इन्हें किसी पिछले जन्म की कमाई से मिला है।

अणिमा, महिमा, लघिमा आदि सिद्धियों को प्राप्त करना तो योगाभ्यास का विषय है पर कितनों में ही अनायास रूप से ऐसी विशेषताएँ देखी जाती हैं, जिन्हें अद्भुत, अनुपम एवं आश्चर्यजनक कहा जा सके।

इन दिनों वैज्ञानिक क्षेत्र में मानवी अतीन्द्रिय क्षमताओं का प्रसंग चर्चा का विषय बना हुआ है। दूर संचार, दूरदर्शन, पूर्वाभास, स्वप्न संकेत अदृश्य सहायक मानवीय विद्युत विचार संचार, स्वसम्मोहन, शरीर विद्युत, हिप्नोटिज्म, प्रेत हलचल, पुनर्जन्म जैसे विषयों पर भारी खोज बीन जारी है। ढूंढ़े गये प्रमाणों से इन सभी प्रसंगों पर अनेकानेक ऐसे घटनाक्रम मिलते चले जाते हैं, जिन्हें गम्भीर परीक्षण के उपरान्त यथार्थता के रूप में समझा भी गया है। उन्हें उपहास में उड़ा देने की अन्ध-विश्वास बताने की या झुठलाने की हिम्मत बड़े-बड़े तार्किकों एवं अनास्था वादियों की भी नहीं पड़ रही है। शरीर में भिन्न चेतना की शाश्वत सत्ता के क्रिया कलापों को देखते हुए उन्हें मान्य शोध विषयों में सम्मिलित किया गया है।

मनुष्य शरीर का अस्तित्व जलने के साथ ही समाप्त नहीं हो जाता। उसका अस्तित्व किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं बना अवश्य रहता है। इस सम्बन्ध में धार्मिक मान्यताएँ तो न्यूनाधिक मात्रा में मिलती जुलती ही रही हैं। पर अब विज्ञान ने भी इस संदर्भ में अपनी हठधर्मिता छोड़ दी है कि शरीर मात्र चलता फिरता पेड़ पौधा ही है जो दिल की धड़कन बन्द होते ही अपनी सत्ता की इति श्री कर बैठता है। उपलब्ध प्रमाणों में दिवंगत आत्मा प्रेत-पितर के रूप में नित नये घटनाक्रम सामने आते रहे हैं। जिन्हें अन्धविश्वास या मन गढ़न्त भर नहीं कहा जा सकता।

बाइबिल में ईसा के बारे में लिखा है कि वे पूर्व जन्म में एलीसियस थे। इसके बाद वे ईसा के रूप में जन्मे। यह भी कहा जाता है कि वे फिर जन्म लेंगे और संसार का नये सिरे से कल्याण करेंगे।

थियोसोफिकल सोसाइटी का जन्म ही इस आधार पर हुआ कि उसमें शामिल वैज्ञानिकों का प्लेन्चेट द्वारा मृतात्मा से सम्बन्ध हुआ और उसके माध्यम से ऐसी सूचनाएं प्राप्त हुईं जिनकी प्रामाणिकता में कोई सन्देह न था। शोध के उपरान्त अनेक वैज्ञानिक तथ्यों ने मृतात्माओं के अस्तित्व को प्रमाणित कर दिखाया और उस संदर्भ में आगे गहरी खोजें करते रहकर उस मान्यता को प्रामाणिकता का जामा पहनाया।

परामनोविज्ञान के घटना प्रसंगों के अंतर्गत कई ऐसे प्रामाणिक प्रसंग ऐसे व्यक्तियों से संदर्भित मिलते हैं जिन्हें देख पढ़कर उनकी विश्वसनीयता पर कोई संदेह नहीं रहता। कुछ स्वप्नों में मिली प्रेरणा से संबंधित होते हैं तो कुछ अनायास मिली अदृश्य प्रेरणा के रूप में। कुछ पुनर्जन्म संबंधी होते हैं तो कुछ पूर्वानुभूति के रूप में। अनेक व्यक्तियों को आने वाले घटना क्रम, विभीषिका, दुर्योग या समष्टिगत विपत्ति का आभास ऐसे होने लगता है, मानो उनकी आंखों के सामने फिल्म चल रही हो। उस समय तो सब कुछ रहस्यमय आश्चर्यजनक लगता है, पर जब यह सत्य सिद्ध होता है तो फिर अविज्ञात के संबंध में कोई दुविधा मन में रह नहीं जाती।

जॉनेथन सैमुअल ने अपनी एक काल्पनिक विज्ञान कथा में सौर मण्डल की स्थिति पर भी प्रकाश डाला है। एक जगह उसने लिखा है कि मंगल ग्रह के दो चन्द्रमा हैं जिनमें एक से दूसरे की चाल दूनी है।

उस समय उस कथन को कपोल कल्पना ही कहा गया पर उसके 154 वर्ष बाद वाशिंगटन की नवेलि आब्जर्वेटरी ने दूरबीनों की सहायता से ठीक वैसा ही पाया। मंगल ग्रह पर दो चन्द्रमा देखे गये। उनमें एक की अपेक्षा दूसरा दूने वेग से दौड़ता है। एच.जी. वेल्स की काल्पनिक कथाएँ भी बाद में कई अंशों तक सही पाई गई हैं।

आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में वहाँ के विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने मिलर परामनोविज्ञान सम्बन्धी शोधों के लिए एक सोसाइटी बनाई है, जिसका उद्देश्य है, अविज्ञात रहस्यों का मानवी अवचेतन के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध होने न होने की घटनाओं की जाँच पड़ताल करके निष्कर्ष निकालना। उसने इस प्रसंग में उपस्थित किये गये प्रयासों को झुठलाया नहीं है। साथ ही यह भी स्वीकार किया है कि इस संदर्भ में धैर्यपूर्वक लम्बे परीक्षण की आवश्यकता है।

भारत में बनारस नगर में “इंडियन सोसाइटी फॉर साइकिक एन्ड यौगिक रिसर्च” है। इसके अन्वेषकों ने भी यह माना है कि उपलब्ध प्रमाण ऐसे नहीं हैं जिन्हें उपहास में उड़ाया जा सके। उनकी गम्भीरता अधिक अन्वेषण की माँग करती है।

रूस में उत्रेखत्वस्की यूनीवर्सिटी ने परामनोविज्ञान के रहस्यवादी पक्ष को मान्यता दी है। उसने इस विषय पर 14 देशों की एक अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी भी बुलाई थी। नेल्या मिखाइलोवा नामक रहस्यवादी परामनोवैज्ञानिक इसी राष्ट्र की हैं व कई वैज्ञानिक इसका परीक्षण भी कर चुके हैं।

ब्रिटेन के सर ई.ए. वेलिंग्टन पुरातन भाषाओं और लिपियों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। उनने अपने इस क्षेत्र में प्रवेश करने और सफलता प्राप्त करने के सम्बन्ध में एक स्वप्न संस्मरण लिखा है।

एक रात वे सोये हुए थे कि उन्होंने सपना देखा कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पुरातन विद्या का एक शोध विशेषज्ञ नियुक्त किया जाना है। उस प्रतियोगिता में उसे सम्मिलित हो जाना चाहिए। कोई शक्ति सफलता दिलाने में उसकी सहायता करेगी।

प्रतियोगिता वस्तुतः अगले दिन होने ही वाली थी। वेलिंग्टन को उसमें स्थान पाने की उत्कण्ठा भी बहुत थी। सपने के आश्वासन में उनका उत्साह बढ़ा। नियत तिथि आई तो उनने फिर एक सपना देखा जिसमें एक वयोवृद्ध उनके हाथ में परीक्षा के प्रश्न पत्र थमा रहा है। साथ ही एक पुस्तिका में उनके उत्तर भी लिखे थे। सोते-सोते ही उनने उन कागजों को कई बार पढ़ा और ऐसी मनःस्थिति बना ली, मानो उन्हें वह सब कुछ भली-भाँति याद हो गया है।

दूसरे दिन परीक्षा हुई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब ठीक वही प्रश्न पत्र सामने आये जो उन्होंने सपने में देखे थे। आश्चर्य यह है कि उत्तर उन्हें याद थे, सो लिखने में तनिक भी कठिनाई नहीं हुई।

पर्चे जाँचे गये। वे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए और विभागाध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए। उनने अत्यन्त दुरूह समझी जाने वाली प्राचीन लिपियों का सफल अन्वेषण किया। उनके प्रतिपादन को प्रामाणिक माना गया और कितने ही अविज्ञात रहस्यों का उद्घाटन हुआ।

इन सफलताओं के सम्बन्ध में उन्होंने बताया कि उन्हें लिपियों के रहस्य जानने में इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ी जितनी कि समझी जाती है। उन्हें किसी अदृश्य सहायक ने जो उन विधाओं का पारंगत था, सहायता की और प्रतिपादन इतनी जल्दी सम्पन्न हो गये जिसकी कोई आशा न करता था। जीवन भर वे पुरातत्व विधा पर ही अन्वेषण करते रहे व अपनी उपलब्धियों का श्रेय परोक्ष जगत में बैठी दैवी सत्ता को देते रहे।

प्रख्यात फिल्म कलाकार रोमान रोवारी उस दिन एक छोटे होटल में ठहरे हुए थे। होटल के मालिक की मृत्यु के उपरान्त उसके लड़कों के बीच सम्पत्ति के बटवारे का झगड़ा चल रहा था। पिता इस सम्बन्ध में मरने से पूर्व कोई वसीयत कर गये हैं क्या? इसका उन लड़कों को पता न था। झगड़ा रोवारो के सामने भी एक प्रतिष्ठित अतिथि के नाते आया। उसमें कहा गया कि कोई उपाय हो तो झगड़ा सुलझाएँ।

रोवारो इसी समस्या को अपने मस्तिष्क में लिए हुए सो गया। रात को उसे सपना आया कि वह वसीयत होने की आशा से होटल के तहखाने में लगी लोहे की अलमारी को खोल कर उसकी कुरेद-बीन कर रहा है इतने में रद्दी कागजों के ढेर के बीच उसे वसीयत मिल गई। खुशी का ठिकाना न रहा कि वह झगड़े को सुलझाने में कामयाब हुआ। इतने में उसकी नींद खुल गई। सवेरा होने में देर न थी। उठकर वह नित्य कर्म से निपटा और लड़कों को बुलाया। सपने की बात कही। किसी को विश्वास तो न हुआ फिर भी देखा तो तहखाने में सचमुच एक लोहे की अलमारी पायी गई। उसे ढूंढ़ने गया तो अन्य कागजों के बीच फँसी हुई वह वसीयत मिल गई।

उस आधार पर बटवारा हो गया और उस सपने ने एक बड़ी समस्या सुलझा दी।

पुलित्जर पुरस्कार विजेता अमेरिका निवासी मैकिनेल केन्टर ने अपनी पुस्तक में उस घटना का सुविस्तृत विवरण लिखा है जिसमें वाशिंगटन के एक छोटे होटल में किसी प्रेतात्मा के साथ उन्हें झगड़ना पड़ा था। लेखक के कथनानुसार कम्बल ओढ़ कर सोया ही था कि पैताने की ओर से कोई उसका कम्बल खींचने लगा। उसने आवाज दी पर कोई बोला नहीं। सोचा चूहा आदि कोई खटपट कर रहा होगा। उसने कम्बल कस कर पकड़ लिया तो भी वह खिंचता चला गया। आधा शरीर नंगा हो गया। इस पर वह उठ बैठा और चारों ओर कारण तलाश करने लगा। उसे दीवार से सटा हुआ एक व्यक्ति दिखाई दिया। साथ ही कमरे में अविज्ञात रोशनी एवं एक विचित्र गंध फैलाने लगी। भूत हँसा और फिर लड़ने, धमकाने की मुद्रा में सामने आ गया। अन्ततः मैकिनेल डरकर बाहर आ गया और दरवाजे से बाहर बैठकर रात गुजारी। फिर भी उसे कमरे में मनुष्यों की बात चीत सुनाई और हलचल दिखाई देती रही।

फ्रेडरिक मायर्स ने मनुष्य की रहस्यमय चेतना के सम्बन्ध में बहुत खोजा और बहुत लिखा है। वे उस सत्ता को “सबलिमिनल सेल्फ” कहते थे।

मायर्स ने संसार के विभिन्न क्षेत्रों में दौरे किये और दुर्घटनाओं को खोजा जो मनुष्य की सामान्य बुद्धि एवं क्षमता से परे थीं। बारह वर्षों के प्रयत्न से उसने प्रायः 400 ऐसी घटनाएँ खोजीं जिनका उत्तर सामान्य बुद्धि से नहीं दिया जा सकता और न कोई तार्किक उनकी यथार्थता पर सहज विश्वास कर सकता है, पर वे सभी सत्य थीं। प्रमाणों पर आधारित थीं।

मायर्स ने अपनी खोजों को वैज्ञानिकों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए परीक्षा की कसौटी पर कसा जाना पसंद किया। इस उद्देश्य के लिए उसने “साइकिक रिसर्च सोसाइटी” का गठन किया। उसमें तार्किक और वैज्ञानिक प्रत्यक्षवादी सम्मिलित किये। इस जाँच पड़ताल द्वारा यह पाया गया व प्रमाणित किया गया कि पूर्वाभास और दूरदर्शन के कितने ही अनुभव सही भी होते देखे गये हैं। उनने प्रेतात्माओं की हलचल को भी प्रामाणिक सिद्ध किया। विवाद रहते हुए भी उनके प्रतिपादनों में से अधिकाँश ऐसे थे जिनका खण्डन किसी भी आधार पर नहीं किया जा सकता था।

दार्शनिक सुकरात अपने समय के प्रख्यात मनीषियों में से एक थे। उनने स्वयं तो अपनी जीवनी नहीं लिखी, पर विद्वान प्लेटो, जेनोफेन प्लुटार्क आदि के ग्रन्थों से सुकरात की जीवन गाथा के साथ जुड़े हुए कितने ही प्रामाणिक संस्मरण मिलते हैं।

उन उल्लेखों के आधार पर माना जाता है कि सुकरात के साथ एक दिव्य आत्मा रहती थी जिसे वे “डेमन” कहते थे। वह उन्हें हर महत्वपूर्ण विषय पर परामर्श दिया करती थी, जिन्हें वे अक्षरशः स्वीकारते थे।

इस संदर्भ में कितने ही ऐसे घटनाक्रमों का उल्लेख है जो पूर्वाभास के रूप में उन्हें बताये गये। उन्होंने उन्हें मित्र मण्डली में प्रकट भी कर दिया। समय आने पर वे सभी पूर्व सूचनाएँ सही साबित हुईं।

विद्रोह फैलाने के अपराध में अदालत से सुकरात को मृत्यु दण्ड मिला। अपील में उनके छूट जाने के लिए पर्याप्त सामग्री एकत्र कर ली गई थी। पर “डेमन” ने कहा “यह मृत्यु तुम्हारे लिए श्रेयस्कर है। इससे इन्कार मत करो।” सुकरात ने अपील नहीं करने दी और वे विष का प्याला पीकर खुशी-खुशी मृत्यु की गोद में चले गये। कोई-कोई डेमन को उनका छाया पुरुष मानते थे, कोई अदृश्य आत्मा मानते थे।

इंग्लैण्ड के प्रख्यात लेखक लार्ड मिण्ट ने अपनी पुस्तक “दि थर्ड किलर” में अपने भारतीय मित्र सरदार के. एस. पणिक्कर के सम्बन्ध में लिखा है कि उनका विश्वास था कि भारत में सन् 2000 के बाद कम्युनिज्म आ जाएगा। उसका नेतृत्व करने के लिए मुझे उस समय परिपक्व युग चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि मुझे इन्हीं दिनों मर जाना चाहिए ताकि नये जन्म में उस नेतृत्व को सम्भालने योग्य बन सकूँ “उनकी इच्छा पूरी हुई और वे अपने इच्छित समय पर साधारण मौत मर भी गये। सन् 2000 आने वाला है। वह युग वैसा होगा या नहीं एवं उनका पुनर्जन्म होगा या नहीं, यह एक प्रश्न चिन्ह है।

आत्मा की अमरता का सिद्धान्त यदि सही सिद्ध होता है और उसके पुनर्जन्म होने से लेकर पूर्व कृत कर्मों या अभ्यासों का सिलसिला क्रमबद्ध बैठता है तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। भविष्य को उज्ज्वल बनाने की चिन्ता एवं इच्छा हर विचारशील में पाई जाती है। पर यह निश्चित नहीं हो पाता कि भले बुरे कर्मों के प्रतिफल यदि अभी नहीं मिलते हैं तो भविष्य में कभी मिल सकते हैं क्या?

शरीर मरण के बाद आत्मा का अस्तित्व समाप्त हो जाने की बात नास्तिक स्तर के प्रत्यक्षवादियों द्वारा कही जाती है, पर उसका प्रमाण उत्तर उनसे नहीं बन पाता जो आत्मा को अमर मानकर उसके साथ कृत्यों तथा आदतों की शृंखला साथ जाने की बात से अन्यायों को भी सहमत करना चाहते हैं। प्रत्यक्ष वाद ही प्रत्यक्षवाद का जवाब है। अब परिस्थितियाँ ऐसी बनती जा रही हैं। मुनियों ने आत्मा के चिरस्थायी अस्तित्व के सिद्ध करके अगले जन्मों में क्रियाकलापों की परिणत सिद्ध की जा सके।

यह सिद्ध होना मनुष्य के दृष्टि कोण को व्यापक रूप से निरत रहने से भविष्य में सत्परिणाम मिलने का विश्वास सुदृढ़ एवं सुस्थिर हो सकेगा।


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