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December 1986

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एक राज्य में रिवाज था कि जिसे राजगद्दी पर बिठाया जाता उसे दस साल बाद एक ऐसे निर्जन टापू में छोड़ दिया जाता जहाँ अन्न-जल का कोई प्रबन्ध न था। भूखा प्यासा मरना पड़ता।

बहुत राजा इसी प्रकार मरे। पर एक बुद्धिमान ने सिंहासन पर बैठते ही उस टापू को बसाना शुरू कर दिया। कुँआ, तालाब, वृक्ष, महल, उद्योग, जनसंख्या आदि सभी की व्यवस्था कर ली। दस साल बाद वहाँ पहुँचा तो राजा से भी अच्छी स्थिति में रहा। यह लोक और परलोक का प्रसंग है।


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