दो भूल जाने योग्य है। एक वह नेकी है जो अपने द्वारा किसी के साथ बन पड़ी और दूसरे वह बदी जो दूसरे ने अपने साथ की। दो याद रखने योग्य हैं एक- कर्तव्य। दूसरा- मरण।
नरक-पाताल भी अन्यत्र नहीं हैं और न वे किसी दूसरे के बनाए हुए हैं, न किसी के आधिपत्य में। वे भी अपनी ही दुर्बुद्धि, दुष्प्रवृत्ति और नीचता से सम्बन्धित हैं। जिस प्रकार तेज धूप में बैठने से शरीर गरम हो जाता है, ठीक उसी प्रकार उग्र, ओछे और स्वार्थी स्वभाव के कारण जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, उसी को अधोगामी पाताल या शोक संताप से भरा नरक कह सकते हैं।
भगवान ने हमें इस अलौकिक सुविधा सम्पन्न पृथ्वी पर सुरदुर्लभ मनुष्य शरीर देकर भेजा है। अब हमारा दायित्व है कि उसे श्रेष्ठ एवं समुन्नत बनाकर धरती पर स्वर्ग उतार कर दिखायें।