एक महात्मा ने किसी भक्त की सेवा भावना से प्रसन्न होकर उसे सात दिन के लिए पारस-मणि दी और कहा- इसे छूने से लोहा सोना हो जाता है। जितने सोने की जरूरत हो बना लो। सात दिन बाद यह वापिस ले ली जायेगी।
भक्त बड़ा प्रसन्न हुआ कि अब मेरा सारा दरिद्र दूर हो जायेगा। पर वह था बड़ा कंजूस। सस्ता लोहा बड़ी तादाद में ढूंढ़ने लगा। जिस दुकान पर वह गया वहाँ उसकी समझ में लोहा थोड़ा था और महँगा भी था। बहुत सस्ता और बहुत बड़ा ढेर ढूंढ़ने के लालच में वह कई नगरों में गया पर उसे कहीं सन्तोष न हुआ।
इसी भाग-दौड़ में सात दिन पूरे हो गये। मणि वापिस ले ली गई और वह रत्ती भर भी सोना प्राप्त न कर सका।
अधिक सयाने बनने वाले और अधिक कंजूस सदा घाटे में रहते हैं।