यह परम्परा जब तक स्थिर रही तब तक इस देश को विश्व जन समुदाय ने जगद्गुरु का सम्मान दिया और चक्रवर्ती शासक के रूप में अपना भाग्य उन्हीं देवजनों के हाथ सौंपा। स्वर्ग सम्पदाएँ भी इन्हीं के हाथों अमानत रूप में जमा होती रहीं ताकि आवश्यकतानुसार उपयुक्त प्रयोजनों के लिए उसका प्रयोग होता रहे।
सतयुग की वापसी सन्निकट है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि सन्त परम्परा अपनाने के लिए विज्ञ समुदाय में उमंगों भरी लहरें उठ रही हैं और लोग स्वार्थ के बंधन तोड़कर परमार्थ की दिशा अपना रहे हैं। वे परिव्राजक बनने की विशालकाय योजना बना रहे हैं।
“विश्व चेतना अवतार ले चुकी है । नई पीढ़ी का सबसे बड़ा कर्त्तव्य यह है कि वह इस चेतना में आत्मा का प्रवेश कराये। हमें ऐसे आदर्शों एवं ऐसी संस्थाओं को अस्तित्व में लाना है जिनके भीतर से विश्वात्मा अपनी अभिव्यक्ति कर सके।” -सर राधाकृष्णन