सत्साहस की सामर्थ्य

December 1986

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शरीर बल, शस्त्र बल, धन बल, विद्या बल आदि की तरह मनोबल भी एक शक्ति है- सामान्य नहीं असामान्य। वह सत्साहस के रूप में उभरती है और साधन एवं सहयोग के अभाव में भी बहुत कुछ कर गुजरती है।

अनीति की दिशा अपना लेने पर साहस को दुस्साहस कहते हैं। दस्युओं, तस्करों, आतंकवादियों का भी मनोबल सामान्य लोगों की तुलना में अधिक उभरा हुआ होता है। वे जोखिम उठाकर भी नृशंस कृत्य कर गुजरते हैं। इतने पर भी उनकी अंतरात्मा उन्हें धिक्कारती रहती है। समाज में भर्त्सना होती है और राजदण्ड मिलता है। ऐसे प्रयासों के साथ जुड़े हुए मनोबल को क्रूरता, दुष्टता आदि नामों से पुकारा जाता है। इससे लोग भयभीत-आतंकित तो होते हैं, पर उनका कोई सम्मान समर्थन नहीं करता। लोभ या दबाव से जो उनका साथ देने लगते हैं। वे भी पकड़ ढीली होने पर बिदक कर अलग खड़े हो जाते हैं। यहाँ तक कि बन पड़े तो संचित घृणा को प्रतिशोध के रूप में प्रकट करके रहते हैं।

सत्साहस वह है जिसके साथ आदर्श जुड़े होते हैं। कितने ही पुण्यात्मा उच्च सिद्धान्तों के लिए प्रसन्नतापूर्वक त्याग-बलिदान करते हैं। यदि उनका आत्मबल बढ़ा हुआ न होता तो प्रतिपक्षियों का आक्रमण और स्वजन-सम्बन्धियों का झंझट से दूर रहने का सिखावन उनका मार्ग रोक लेता, पर जिन्हें मानवी गौरव गरिमा के प्रति आस्था है उन्हें किसी का भी भय नहीं लगता। न वे डरते हैं और न रुकते हैं।

भारत बंटवारे के दिनों नोवाखाली बंगाल में भारी रक्तपात हो रहा था। एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय का रक्त-पिपासु बन रहा था। इस पागलपन को रोकने के लिए गाँधी जी ने उस क्षेत्र में स्वयं जाना उचित समझा। वे चल पड़े। प्रश्न सुरक्षा का था। हत्यारे गाँधी जी की भी जान ले सकते थे। इसलिए उनके साथी शुभचिन्तकों ने सोचा कि सुरक्षा व्यवस्था का प्रबन्ध रखा जाय। उन्हें अकेले न जाने दिया जाय। साथ में अन्य लोग भी चलें ताकि जिन पर पागलपन सवार है वे गाँधी जी पर हाथ न डालें।

प्रसंग गाँधी जी ने सुना तो वे इस पर सहमत न हुए। सभी साथियों को लौटा दिया और वे अकेले ही चल पड़े। उनने कहा- “सचाई और भलमनसाहत की संयुक्त शक्ति इतनी बड़ी है कि अकेला सत्याग्रही भी बड़े से बड़े खतरे के बीच जा सकता है। उसे किसी से भी डरने की जरूरत नहीं। मौत से भी नहीं।” गाँधी जी उस रक्त रंजित क्षेत्र में देर तक अकेले ही रहे और आवेशग्रस्तों का उन्माद उतारते रहे। पीड़ितों को सान्त्वना और हिम्मत देकर उनके घावों पर मरहम लगाते रहे। अनीति अधिक समय तक नहीं ठहर सकती। वह रुकनी तो थी, रुक भी गई। गाँधी जी निर्भयतापूर्वक बिना किसी प्रकार का आक्रोश व्यक्त किये अपना काम सफलता पूर्वक करते रहे।

आदर्शों के लिए गहरी निष्ठा रखने वाले व्यक्ति अपने कर्तव्य से इसलिए नहीं रुकते, कि उनके मार्ग में खतरा है? खतरे को कमजोर और कायर नहीं उठा सकते, वे घाटा भी नहीं उठा सकते, किन्तु जिन्हें कर्तव्य का बोध है, वे समय पर अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में चूकते नहीं। मनोबल का सत्साहस उनका समर्थ साथी होता है।


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