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December 1986

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भगवान महावीर उधर से गुजर रहे थे। रास्ते में मिले एक ग्रामीण ने उनके चरणों में गिरकर प्रणाम किया। उत्तर में अर्हन्त ने भी उसके चरणों पर मस्तक टेका। ग्रामीण सकपकाया। बोला- “आप तपस्या के भण्डार हैं उस विभूति को मैंने नमन किया। पर मैं तो कुछ भी नहीं हूँ मेरा नमन किस लिए।” अर्हन्त ने कहा- “तेरे भीतर जो परम पवित्र आत्मा है मैं उसी को देखता हूँ और नमता हूँ। मेरे तप से तुम्हारा सत्य बड़ा है।”

आत्मसत्ता की जानकारी उपलब्ध होना ज्ञान गरिमा का सर्वोच्च स्तर है। भौतिक पदार्थों, इतिहासों, भूखण्डों, शिल्पों, दर्शनों की जानकारियाँ भी समय-समय पर काम आती रहती हैं। उनके सहारे कुशलता बढ़ती है और उपार्जन तथा सम्मान की संभावना बढ़ती है। किन्तु स्मरण रखा जाय कि इन सबमें बड़प्पन आत्म ज्ञान का ही है। आत्म ज्ञान उथला है या गहरा, इसका परिचय हम किसी के भी व्यक्तित्व और कर्त्तृत्व का मूल्याँकन करते हुए ही कर सकते हैं।


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