इक्कीसवीं सदी ! है शुभ आगमन तुम्हारा। ‘युग-साधना-प्रखर’ से शुभ अवतरण तुम्हारा॥
भू पर तुम्हें उतारा, युगऋषि की कल्पना ने। त्म को सतत् सँवारा, सतयुग की कामना ने।
‘उज्ज्वल-भविष्य ‘ लाया, गतिमय चरण तुम्हारा। ‘युग-साधना-प्रखर’ से शुभ अवतरण तुम्हारा॥
आया समय सुनहरा, देवत्व जागने का। आलस्य त्यागने का, असुरत्व त्यागने का॥
सद्भावना से पुलकित अन्तःकरण तुम्हारा। ‘युग-साधना-प्रखर’ से शुभ अवतरण तुम्हारा॥
सद्बुद्धि का सुचिंतन , चंदन महक रहा है।, उत्कृष्ट-आचरण को जन-मन ललक रहा है॥
आदर्श कर रहे हैं , अब अनुकरण तुम्हारा। ‘युग-साधना-प्रखर’ से शुभ अवतरण तुम्हारा॥
गत हैं कुरीतियाँ अब, निःशेष कुप्रथाएँ । पाखंड , अंधविश्वासों की छँटी घटाएँ॥
है सद्विवेक सम्मत् , हर आचरण तुम्हारा। ‘युग-साधना-प्रखर’ से शुभ अवतरण तुम्हारा॥
सहकार, स्नेह, सेवा सद्वृत्तियाँ उभरतीं। मानव में ‘देव’ भू पर है ‘स्वर्ग’को सँवरती॥
वसुधैव कुटुम्बकम् है सद्वत वरण तुम्हारा। ‘युग-साधना-प्रखर’ से शुभ अवतरण तुम्हारा॥
*समाप्त*