एक मच्छर शहद की मक्खियों के छत्ते पर पहुँचा और बोला -”वह बड़ा संगीतज्ञ है। मक्खियों के बच्चों को संगीत सिखाना चाहता है। बदले में थोड़ा सा शहद लिया करेगा।” रानी मक्खी तक समाचार पहुँचा , तो उन्होंने स्पष्ट इनकार कर दिया। कहा- “जिस प्रकार संगीत का ज्ञाता बनकर मच्छर हमारे दरवाजे पर भीख माँगने आया है, उसी प्रकार हमारे बच्चे भी परिश्रम छोड़कर भीख माँगने लगेंगे। मैं नहीं चाहती कि संस्कारों के स्थान पर सस्ते में कुछ पाने का लालच भरा शिक्षण इन्हें मिले। इन्हें अपने आप ही सब कुछ सीखने दो, तभी ये जीवन साधना में खरे उतरेंगे।”
सम्राट अशोक ने आधे मन से नहीं पूर्ण समर्पण भाव से बुद्ध की शरणागति ग्रहण की थी। उन्होंने धर्मचक्र प्रवर्तन की आवश्यकता को देखते हुए अपना वैभव पहले ही समर्पित कर दिया था। स्वयं उसी कार्य में अहर्निश लगे रहते थे । अशोक की दो संतानें थी- एक पुत्र महेंद्र दूसरी कन्या संधमित्रा। दोनों का ही उन्होंने दीक्षित करा दिया। संघमित्रा सिंहल द्वीप गई। वहाँ की राजकुमारी अनुला अपनी पाँच सौ सहेलियों समेत दीक्षित हुई और उस देश में महिला बुद्ध सभी ने उस पूरे देश को बुद्ध का अनुयायी बनाया। महेंद्र कामलाया देश में भेजा गया। इस प्रकार वह पूरा परिवार तन मन धन से उस महान् प्रयोजन के लिए समर्पित हुआ। उनके कारण उस अभियान की सैकड़ों गुनी वृद्धि हुई।