धर्म धारणा का प्रशंसनीय (kahani)

January 2000

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बंगाल के राजा गोपीचंद युवावस्था में अनेक व्यसनों में फँस गए थे। उन्होंने अनेक विवाह किए और मद्यपान जैसी आदतों का अपने को अभ्यस्त कर लिया।

उनकी माता निरंतर एक ही बात सोचती रहतीं कि लड़के को किसी प्रकार कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग पर लगाया जाए। उसकी क्षमता को इस प्रकार बरबाद न होने दिया जाए। उसके व्यक्तित्व को परमार्थ प्रयोजनों के लिए नियोजित किया जाए। वे चाहती थीं कि वह तपस्वी बने और जनकल्याण के कोई महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न करे। इसके लिए उन्होंने स्वयं शिक्षा देना और जीवन का महान् उद्देश्य समझाना प्रारंभ किया। इस कार्य में उनके मामा ने भी महत्त्वपूर्ण परामर्श दिए। माता भर्तृहरि थे और वे पहले ही तपस्वी बन चुके थे। माता और मामा की शिक्षा का प्रभाव पड़ा। साथ ही योगी जालंधर नाथ के संपर्क में आकर वे उनके शिष्य भी हो गए।

गोपीचन्द के जीवन में आमूल परिवर्तन हो गया। वे संयम -साधना से पिछले दुर्गुणों से मुक्ति पा गए। राज प्रबंध उनकी माता और साथियों ने सँभाला। गोपीचंद , भर्तृहरि और जालंधर नाथ का त्रिगुट सुदूर क्षेत्रों में परिभ्रमण करता रहा और धर्म धारणा का प्रशंसनीय वातावरण निर्मित किया।


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