अपनी हीनता समझी (kahani)

January 2000

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सराय के एक ही कोठे में तीन मुसाफिर टिके। एक था भिखारी, दूसरा किसान, तीसरा चोर। रात्रि में तीनों ने अपनी-अपनी गठरी ऊपर खूँटी पर टाँग दी और सो गए।

स्तब्धता देखकर पोटलियों की संपदा आपस में वार्त्तालाप करने और धुल-मिल जाने की इच्छा प्रकट करने लगी।

किसान की पोटली ने कहा -मिलने में कोई आपत्ति नहीं , पर फिर ईमानदारी , नीतिनिष्ठा और श्रमशीलता का भविष्य क्या होगा?

दोनों ने अपनी हीनता समझी और मौन हो गई।


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