आस्ट्रिया का एक छात्र डाक्टरी पढ़ रहा था। नाम था उसका -पैस्टोला। उसे रास्ते चलते एक बच्चा मिला। उसके अभिभावकों को ढूंढ़ने , पुलिस में सूचना देने के उपराँत उसे अनाथालय भेज दिया गया। पैस्टोला को एक दिन के साथ से ही उस बच्चे से मुहब्बत हो गई। वह जब तब उसे देखने जाया करता। कुछ उपहार भी ले जाता। पैस्टोला ने गंभीर दृष्टि से देखा कि अनाथालय में निर्वाह और शिक्षा व्यवस्था तो है पर कर्मचारियों के पास प्यार नाम की कोई वस्तु नहीं, जिसे पाकर बच्चों का अंतःकरण खिलता हो।
पैस्टोला ने पढ़ाई समाप्त करते ही यह आँदोलन चलाया कि जिनकी छोटी गृहस्थी है, वे अनाथ बच्चों का अपने परिवार में सम्मिलित कर लें और उसी लाड़ चाव से पालें। खोजने पर ऐसे उदार व्यक्ति भी मिल गए और असहाय बच्चे भी। आत्मीयता के वातावरण में बच्चों का मन विकसित होने लगा।
पैस्टोला ने विवाह नहीं किया। अनाथ बच्चों को अपना बेटा माना। परित्यक्ताएँ , वृद्धाएँ उसकी बहन और माँ की तरह उसी घर में रहने लगीं। अपनी निज की आमदनी वह इसी कार्य में लगा देता। उसकी देखा−देखी अनेक उदार मन वाले लोगों ने अपने परिवारों में निराश्रितों को सम्मिलित किया। पैस्टोला का आँदोलन दूर दूर तक फैला। उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। यह राशि भी उन्होंने इसी प्रयोजन में लगा दी।
उन दिनों श्रद्धाँजलि यज्ञ चल रहा था। धर्मचक्र प्रवर्तन की बढ़ी हुई आवश्यकता को अनुभव करते हुए , बुद्ध के सभी शिष्य अपने-अपने अनुदान प्रस्तुत कर रहे थे। जमा राशि का लेखा-जोखा लिया गया। किसका धन सबसे अधिक है, इसकी प्रशंसा सुनने के लिए सभी उत्सुक थे। बिंबसार की राशि सर्वाधिक थी। चर्चा गोष्ठी में बुद्ध ने एक वृद्धा का सौंप दिया और अब उसके पास तन के कपड़े और मिट्टी के पात्र ही शेष है।, जबकि औरों न अपनी संपदा के थोड़े-थोड़े अंश ही प्रस्तुत किए हैं।
उन दिनों श्रद्धाँजलि यज्ञ चल रहा था। धर्मचक्र प्रवर्तन की बढ़ी हुई आवश्यकता को अनुभव करते हुए , बुद्ध के सभी शिष्य अपने-अपने अनुदान प्रस्तुत कर रहे थे। जमा राशि का लेखा-जोखा लिया गया। किसका धन सबसे अधिक है, इसकी प्रशंसा सुनने के लिए सभी उत्सुक थे। बिंबसार की राशि सर्वाधिक थी। चर्चा गोष्ठी में बुद्ध ने एक वृद्धा का सौंप दिया और अब उसके पास तन के कपड़े और मिट्टी के पात्र ही शेष है।, जबकि औरों न अपनी संपदा के थोड़े-थोड़े अंश ही प्रस्तुत किए हैं।
एक देश का रिवाज था कि जो राजा चुना जाता, उसे दस वर्ष राज्य करने दिया जाता। इसके बाद उसे ऐसे निर्जन द्वीप में उतार दिया जाता, जिसमें निर्वाह के कोई साधन न थे। बेचारा भूखा-प्यासा दम तोड़ता। अनेकों राजा इसी प्रकार दुर्गतिग्रस्त होते रहे। एक बुद्धिमान् राजा उस गद्दी पर बैठा। पता लगाया दस वर्ष बाद किस द्वीप में जाना है। अगले ही दिन उसने उसमें सुविधाएँ उत्पन्न करने की आज्ञा देदी। इस अवधि में वह द्वीप सुविधा संपन्न देश हो गया। नियत समय पर राजा को वहाँ जान में और बसने में कोई कठिनाई नहीं पड़ी।