गीता में कहा गया है -” न हि ज्ञानेन सदृश पवित्रमिह विद्यते “ अर्थात् इस संसार में ज्ञान से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ पदार्थ नहीं है। आत्मनिर्माण की , सुसंस्कार की, सत्प्रवृत्तियों की भावनाएँ जाग्रत करने वाले सद्विचारों को ही सच्चा ज्ञान कहा जा सकता है। यही जीवन को सफल बनाने वाला सर्वश्रेष्ठ पदार्थ है। ज्ञान लाभ का उद्देश्य पूर्ण करने वाला सर्वसुलभ साधन ‘स्वाध्याय’ ही है।