सा प्रथमा संस्कृति विश्ववारा

January 2000

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भारतीय संस्कृति वह विज्ञान -विधान है, जो जीवन से उसकी विकृति को दूर कर उसकी प्रकृति को संस्कारवान् बनाता है। इस क्रम में न तो देश की दूरियाँ अवरोध बनती हैं और न ही काल की सीमाएँ कोई बाधा उत्पन्न करती है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति-विश्व संस्कृति के रूप में पहचानी जाने के साथ सनातन एवं शाश्वत बनी हुई है।इसी वजह से विदेशी विद्वानों ने भी इसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। डी.ओ.ब्राउन ने ट्रिव्यून पत्रिका में लिखा था-”पक्षपात रहित होकर यदि हम विचार करें और सत्य का विवेचन करें तो स्वीकार करना पड़ेगा कि समस्त संसार के साहित्य , धर्म और संस्कृति में भारतीयता अद्वितीय एवं महान् है।” कर्नल स्लीमेन ने लिखा है कि पुरातनकाल में भारतवासियों की पंचायतें इतनी न्यायनिष्ठ थी कि कोई अपराधी कितना भी बड़ा दंड एवं भय होने पर भी झूठ नहीं बोलता था। यह इसकी साँस्कृतिक महानता का परिचायक है।

प्रो. बेवर और कोलब्रुक ने अपने सतत् अध्ययन एवं अनुसंधान के निष्कर्ष के रूप में यही प्रतिपादित किया कि चीन और अरब में ज्योतिष का जो विकास हुआ है, उसका मूल संकेत भारत से ही वहाँ पहुँचा। अलबरूनी का मत है कि समस्त संसार को भारत ने ही गणित शास्त्र की शिक्षा दी। अमेरिकी विद्वान् डेलमेर ने अपने दीर्घकालीन शोध के निष्कर्ष को प्रतिपादित किया था। उनके इस लेख में भारतीय संस्कृति का स्वर किया था कि पश्चिम को जिन विधाओं को विकसित करने का अभिमान है, वस्तुतः वे भारत से ही वहाँ गई है।

दार्शनिक जगत् ने भी भारतीय संस्कृति के ज्ञान की विशिष्टता को स्वीकारते हुए भारतीय दर्शन को उत्कृष्ट एवं अनुपमेय माना है। दार्शनिक विलियम्स और प्लेटो, दोनों ने ही अपने ग्रंथों के बारे में लिखा है - इन मान्यताओं के प्रति हम भारत के चिर ऋणी हैं। प्रख्यात तत्त्ववेत्ता लैथव्रिज ने भारत को दार्शनिक तत्त्वज्ञान के अन्वेषक के रूप में घोषित किया है। जर्मन विद्वान् मैक्समूलर ने लिखा है -मुझसे कोई पूछे कि विद्या और गुणों की दृष्टि से अतीत में कौन -सा देश समुन्नत रहा है, तो मैं यही कहूँगा -भारतवर्ष।

प्रो.हटर धर्म -दर्शन और विज्ञान दोनों के ही विकास के लिए एकमात्र भारत को ही उत्तरदायी मानते हैं। उनके अनुसार इन विषयों में जो भी सत्य एवं कथ्य है, उस सबको भारतीय संस्कृति के अन्वेषक महर्षिगणों ने बहुत पहले ही प्रतिपादित कर दिया था। मैगस्थनीज ने लिखा है कि सिकंदर जब भारत आया तो एक संन्यासी से उनकी झोपड़ी में मिला। वार्त्तालाप के बाद सिकंदर के मुख से यह स्वीकारोक्ति निकली कि जिस सिकंदर ने अनेक देश फतह किए, वह आज एक कौपीनधारी के सामने परास्त हो गया।

प्रो. विलियम के मतानुसार , यूरोप एवं अन्य एशियाई देशों में गोला-बारूद का प्रचार होने से पहले ही भारत में उसका आविष्कार का श्रेय यूरोपवासी लेते हैं, वस्तुतः उनमें से अधिकाँश का प्रचलन भारतवर्ष में पूर्वकाल में था। डॉ. गिबसन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हैल्थ कल्चर’ में इस सत्य का स्पष्ट उल्लेख किया है कि वेदकाल के महर्षिगण शारीरिक रोगों के साथ मानसिक रोगों का भी उपचार करते थे।

कैट जोंस जैनी ने भारत को सभ्यता की जन्मस्थली कहा है। इन्होंने अपनी कृति ‘हिंदू देवताओं की वंशावली ‘ में इसका विस्तार से वर्णन करते हुए कहा है -भारत मात्र हिंदू देवताओं को जन्मभूमि नहीं है,वरन् वह विश्व की समस्त सभ्यताओं का सूत्रधार है। सर टामस रो की प्रसिद्ध उक्ति तो और भी कुछ अधिक कहती है। उनके अनुसार सूती ही नहीं, ऊनी और रेशमी वस्त्रों के कला विकास में भारत ही चिरकाल से अग्रणी रहा है। अब्दुल रज्जाक ने अपनी सर्वोष्ट रचना ‘मुतालुल सादौन‘ में साफ तौर पर लिखा है - कालीकटके समूचे बाजार में घूमने पर मुझे हैरत हुई कि बिना मालिक के ही दुकानें खुली पड़ी रहती थीं, पर कोई किसी के माल को हाथ नहीं लगाता था।

यूरोप के तत्त्ववेत्ता हर्वर्ट स्पेंसर ने भारतीय संस्कार पद्धति को वैज्ञानिक , बुद्धिसंगत और मानवी व्यक्तित्व में आमूलचूल परिवर्तन करने वाला विधान बतलाया है। उनके अलावा विदेशों के अधिकाँश संस्कृति का सस्वर गौरवगान किया गया है। इनमें से कुछ प्रमुख निम्न हैं -

मैक्समूलर -इंडिया हृट इट कैन टीच अस , हीरेन - हिस्टोरिकल रिसोर्सेज मरे- हिस्ट्री ऑफ हिंदूज एरियन -इंडिका, यूलियम्स -मॉर्डन इंडिया इंडिया एंड द इंडियंस वैरन हम्बल्ट्स-हिंदू माइथोलॉजी पोलक इंडिया इन ग्रीस हार्डी -इर्स्टन मानार्किज्म स्वयाट-सर्पेंटासिंबल, तिलियम जोंस-एशियाटिक रिसर्चेज मिसमैनिंग-एशियंट एंड मेडिवल इंडिया, एल्विनस्टोन हिस्ट्री ऑफ इंडिया , मैक्स उन्कर- हिस्ट्री ऑफ इंडियन एंड ईर्स्टन आर्कीटेक्चर, बेवर-विल्सन वर्क्स विलियम हंटर-इंपीरियलइंडियन गजेटियर मैफी -हिस्ट्री ऑफ लिटरेचर माँनियर विलियम-इंडियाविजडम, तालस-एडिनवर्ग रिव्यू, श्लेगल-हिस्ट्री ऑफ लिअरेचर, टेलर-जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी डूबो बाइबिल इन इंडिया, हर्बर्ट स्पेंसर -ऑटोबायोग्राफी , राँबर्टसन-डिस्वीजिकन कन्सर्निंग इंडिया इन पुस्तकों के अध्ययन से यह पता चलता है कि विदेशी भी भारतीय संस्कृति के संस्पर्श से कितना अभिभूत होते रहे हैं।

यूनानी हो या चीनी ईरानी हो अथवा अरबवासी , कोई भी विदेशी यात्री जिसने भी भारत भ्रमण किया, भारतीय संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। भारत और भारतीयों के बारे में जानकारी देते हुए प्रथम यूनानी लेखक एवं विख्यात चिकित्सक क्तेशियस ने भारतीय न्याय व्यवस्था का विश्व की सर्वोपरि न्याय व्यवस्था कहा।

दूसरी सदी में एपिक्टेक्टस के शिष्य एरियन भारतीय समाज व्यवस्था से बेतरह प्रभावित हुए थे। इन्होंने कहा कि भारतीय का मूल चित्र गाँवों में बसता है। भारत में पहुँचने वाले चीनी यात्रियों का स्थान कालक्रम से दूसरे नंबर पर है। इन लोगों ने भी हिन्दुओं व हिंदू संस्कृति की ईमानदारी , निष्पक्षता, न्यायप्रियता तथा सत्यवादिता के लिए वैसा ही सर्वसम्मत प्रमाणपत्र दिया है।

हृनसाँग ने भारतीयों को स्पष्टवादिता और ईमानदारी जैसे चारित्रिक गुणों के कारण सर्वश्रेष्ठ माना है। उनके अनुसार यहाँ के लोग न्याय के मामले में अत्यधिक उदार थे और स्पष्टवादिता उनके प्रशासनिक गुणों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता रही है। ग्यारहवीं शती में इदरीस नामक मुस्लिम लेखक ने अपने भूगोल में भारतीयों के बारे में अपनी सम्मति देते हुए कहा है कि भारत के लोग स्वभावतः सत्यप्रिय एवं न्यायशील हैं। अपने कार्य के प्रति उनकी दृढ़निष्ठा, ईमानदारी और भक्ति सर्वविदित है। यह सब उनकी महान् संस्कृति की देन है। तेरहवीं शताब्दी में शम्सुददीन अब्दुल्लाह ने बेदी अजर जैना के विवरण में से उद्धरण देते हुए कहा है कि भारतीयों की जनसंख्या अधिक होने के बावजूद वे लोग धोखाधड़ी लड़ाई -झगड़े या आपसी संघर्ष जैसी बुराइयों से सर्वथा अछूते हैं। अपने कर्त्तव्यपालन के लिए व जीवन-मरण से कभी भी नहीं डरते।

मार्कोपोलो के अनुसार भारतीय ब्रह्मांड विश्व में अत्यंत सत्यप्रिय हैं, क्योंकि इस धरती पर किसी भी वस्तु के लिए वे कदापि झूठ नहीं बोल सकते। चौदहवीं शती में फेयर जोर्डेस ने अपने ग्रंथ में कहा था कि दक्षिण और पश्चिमी भारत के लोग अपनी बात के सच्चे और न्यायनिष्ठा के धनी हैं । इन दोनों क्षेत्रों के बारे में इसलिए है, क्योंकि जोर्डेस यहीं पर गया था। कर्नल स्लीमैन ने मीर सलामत का अपनी रचनाओं में समाजसेवी की संज्ञा दी है। इन मीर सलामत के अनुसार एक हिंदू किसी मुसलमान को संरक्षण देने के काम की जिम्मेदारी अपने ऊपर बड़ी खूबी के साथ ले सकता है और इसे निभाने में उसे उचित गर्व भी होता है।

अँगरेजों के शासन में भारत में वायसराय के रूप में काम कर चुके बारेन हेस्टिंग्स ने भी भारतीय संस्कृति की सराहना करते हुए यहाँ के निवासियों को सौम्य , सुशील एवं परोपकारी बताया है। उनके अनुसार इस भूमंडल पर विद्यमान संपूर्ण मानवजाति इस महान् संस्कृति की ऋणी है। विशप हेबर ने भारतवासियों के बारे में विशद्-विवेचना की है। उनके अनुसार यहाँ के लोग बहादुर , अतिथि सत्कार प्रिय, बुद्धिमान तथा ज्ञान -विज्ञान एवं आत्मपरिष्कार के लिए सदा प्रयत्नशील रहने वाले हैं। वे माता-पिता के प्रति विनम्र सदाचार परायण पुरुषार्थी और गंभीर प्रकृति के हैं। साथ ही व निरपवाद रूप से सुशील और धैर्यवान् हैं। हमारे यहाँ के शकरों और कस्बों में जितने गिरे हुए लोग दिखाई देते हैं, हिंदुओं के किसी भी वर्ग के लोग उतने गिरे हुए नहीं हैं। भारत के ग्रामवासी सौहार्दपूर्ण , अपने परिवार के प्रति ममतामय एवं कर्त्तव्यपरायण होते हैं। व विशेष रूप से सदैव ईमानदार और सत्यनिष्ठ रहते हैं। सर जॉन मालक्रम ने इसे इस ढंग से स्पष्ट किया है, मुझे ऐसा कोई विवरण या वृत्ताँत याद नहीं आता, जबकि भारत के जनसाधारण से शाँति और निर्भयता के साथ बातचीत की गई हो और विश्वस्त माध्यम (दुभाषिए) के द्वारा अंग्रेजी भाषा में , व्यक्त किए गए विचारों को सही ढंग से समझाया गया हो और उसका निष्कर्ष यह न निकला हो कि पहले जो कुछ असत्य कहा गया था, वह या तो भय के कारण अथवा बात को ठीक से न समझ पाने के कारण ऐसा हुआ था।

विदेशी आगंतुक या विचारक यहाँ के जीवन से जो मोहित हुए, उसका कारण यहाँ की सद्गुण -संपत्ति एवं ज्ञान-विज्ञान को समृद्धि रही है। भव्य अतीत यदि वर्तमान में धुंधला एवं धूमिल नजर आने लगा है, तो उसका एकमात्र कारण यहीं है कि हम अपनी साँस्कृतिक विरासत को भूल गए हैं, विस्मृत कर बैठे हैं। उस विज्ञान -विधान की जाने अनजाने अवहेलना हुई है जो हमारी वैयक्तिक एवं सामाजिक विकृतियों को परिष्कृत कर हमें सुघड़ व सुसंस्कृत बनाता था। धुँधले वर्तमान को यदि समुज्ज्वल भविष्य में रूपांतरित करना है तो उसका सर्वमान्य सूत्र यही है कि हमारी संस्कृति हमारे अपने जीवन का अभिन्न अंग बने। इस तरह पनपी देवत्व की बहुलता ही देवसंस्कृति को विश्वसंस्कृति का स्वरूप प्रदान कर सकेगी।


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