क्राँतिकारी सरदार भगतसिंह को उन दिनों निर्वाह में कठिनाई अनुभव हो रही थी। भाई शार्दूलसिंह अमृतसर काँग्रेस के प्रमुख थे। उन्होंने काँग्रेस दफ्तर में ही 150/- मासिक की नौकरी दिला दी।
भगतसिंह ने मात्र 30/-मासिक ही स्वीकार किए और कहा - “पैसा न बटोरना है, न उड़ाना । औसत भारतीय निर्वाह की दृष्टि से हमें इतने में ही काम चलाना चाहिए।”
सारी विश्व−वसुधा का एक परिवार मानने वाले महापुरुषों का दृष्टिकोण ऐसा ही उच्चस्तरीय होता है।