प्रकृति रहस्यों का पिटारा है। यह ऐसी अमुक घटनाओं को जन्म देती है, जिन्हें आश्चर्य एवं चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता। इन्हीं में बरमूडा त्रिकोण क्षेत्र की घटनाएँ शामिल हैं। कभी यह क्षेत्र व्यावसायिक और सामरिक जहाजों के लिए आवागमन का मुख्य जलमार्ग था। उन दिनों यहाँ किसी रहस्य की कल्पना किसी के भी मन में नहीं उठी थी, परंतु एकाएक बरमूडा संसार के आश्चर्यजनक स्थानों में सर्वप्रथम गिना एवं जाना जाने लगा। इस क्षेत्र से होकर जाने वाले जलयान एवं वायुयान अचानक किसी रहस्य के साए में गुम होने लगे। एक नहीं, अनेक ऐसी घटनाएँ घटी, जिनकी खोजबीन निरर्थक सिद्ध हुई। कोई भी उनके परिणाम एवं निष्कर्ष तक नहीं पहुँच पाया, हालाँकि वर्तमान में भी वर्तमान में भी विज्ञानवेत्ता प्रयासरत है।
इन वैज्ञानिक आंकलनों के अनुसार बरमूडा की भौगोलिक स्थिति त्रिभुजाकार है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के दक्षिण-पूर्वी अटलाँटिक महासागर के अक्षाँश 25 डिग्री से 45 डिग्री उत्तरी और देशान्तर 55 से 85 डिग्री पश्चिम के बीच फैली यह जगह काफी रहस्यमय है। इसका क्षेत्रफल लगभग 390000 वर्ग किमी. है। एक काल्पनिक रेखा मेलबोर्न से बरमूडा, बरमूडा से पुतौरिका और वहाँ से फ्लोरिडा को जाती है। यह क्षेत्र एक त्रिभुजाकार आकृति लिए हुए है। इसके तीन कोण बरमूडा, मियामी और
सेनजुआना पुतौरिका को स्पर्श करते हैं। अपने रहस्यमय क्रियाकलापों के बाद से यह बरमूड़ा ‘मौत के त्रिकोण ‘ के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है। यहाँ पर कंपास की चुँबकीय क्षेत्र की यह विशेषता ही अपने आप में सबसे अनोखा आश्चर्य है।
आवागमन के सुलभ मार्ग के रूप में समझा जाने वाला बरमूडा सन् 1854 में अचानक रहस्यमय घोषित हो गया। सहज-सामान्य सा बरमूडा का क्षेत्र विश्व के अनेक आश्चर्यों में से अग्रणी गिना जाने लगा, क्योंकि इसी ...... से यहाँ वायुयानों एवं जलयानों का लोप होना प्रारंभ हो गया। अनेक अन्वेषण -अनुसंधानों के बावजूद प्रकृति के इस रहस्य को अनावृत नहीं किया जा सका। यहाँ अनेक दुर्घटनाओं के बाद सर्वप्रथम जनवरी, 1880 में बरमूड़ा से इंग्लैण्ड की ओर रवाना हुआ विशाल जलयान ‘द ब्रिटिश फाइडोट’ के गुम होने का समाचार मिला। अक्टूबर 1902 में जर्मनी का जहाज क्रेया भी यहाँ पर एकाएक कहीं गायब हो गया। मई 1925 मेंहवाना की ओर जा रहा जहाज एस.एस.कोटोपक्सी जैसे ही बरमूडा क्षेत्र का स्पर्श करते हुए आगे बढ़ा उसके अस्तित्व का लोप हो गया। अप्रैल 1932 में बरमूडा में दक्षिण में 50 किलोमीटर की दूरी पर जान आर मेरी नामक दो जहाज डूब गए। फरवरी, 1940 में बरमूडा से 62 किलोमीटर दूर दक्षिण में मेरीन सल्फर क्वीन नामक प्रसिद्ध जहाज समुद्र की अतल गहराई में विलीन हो गया। इस जहाज के ठीक पीछे-पीछे टी.वी.एम.एवेंजर का पूरा सैन्य दल रवाना हुआ था। परंतु यह भी गुम हो गया। अथक प्रयासों के बाद भी इस रहस्य का रंचमात्र भी उद्घाटन नहीं किया जा सका।
इसी तरह बरमूडा क्षेत्र में हवाई जहाजों की या तो दुर्घटनाएँ हो गई या फिर ये प्रकृति के किसी गहरे रहस्य में डूब गये। 5 दिसम्बर 1945 को टी.वी.एम. एवेंजर के पाँच बमवर्षक विमान फोर्ट लाउंड्रेला नौसेना हवाई पट्टी में प्रशिक्षण उड़ान पर थे। कुछ देर पश्चात् बरमूडा के क्षेत्र में प्रवेश करते ही इनका रेडियो संपर्क स्वतः समाप्त हो गया। दो घंटे के बाद ये पाँचों वायुयान लापता हो गए। 3 जुलाई 1947 में बरमूडा से 100 मील पूरब दिशा में अमेरिकी सेना कासुपर फोर्ट सी -54 विमान भी इसी प्रकार से गुम हो गया। 29 जनवरी, 1948 को चार इंजन वाला स्टार टाइगर गुडार -4 विमान का बरमूडा से उत्तरी-पूर्वी दिशा से 380 मील दूरी पर रेडियो संपर्क टूट गया। इस विमान में आठ विमान कर्मचारी और 39 यात्री थे, जो सभी के सभी किसी अदृश्य रहस्य में खो गए। 9 जनवरी, 1949 को एक पी.वी.एम.मार्टिन बमवर्षक विमान 13 उड़ान कर्मचारियों के साथ इसी क्षेत्र में लापता हो गया।
2 फरवरी 1942 को जेमेकी की ओर आ रहा विमान ‘यार्क ट्राँसपोर्ट ‘ इस क्षेत्र की उत्तरी दिशा में ऐसा उलझा कि कहीं उसका पता तक नहीं चल पाया। 30 अक्टूबर 1945 का बरमूडा त्रिभुज के उत्तर में नौसेना के विमान सुपर कंसल्टेशन का भी ठीक यही हश्र हुआ। 5 जून 1965 की तारीख भी कुछ ऐसा हादसा अपने साथ लाई। इस दिन दक्षिण पूरब बहामास में सी - 199 फ्लाइंग बाक्सर नाम वायुयान उड़ान भरने के पश्चात् एकाएक गायब हो गया। जिसका बाद में कहीं कोई पता नहीं चल सका। 5 अप्रैल 1966 को दक्षिण-पूर्वी बहामास में बी-25 माल वाहक वायुयान गुम हो गया। 11 जनवरी 1967 को ग्राँड बहामास बहामास आर पामबीच के मध्य 7-सी कार्गो विमान इसी खाड़ी में लापता हो गया। इसी प्रकार मई 1968 का अमेरिकी पनडुब्बी ‘स्कोरपियन’ इस क्षेत्र के रहस्यमय सागर की अतल गहराई में समा गई। कई महीनों तक इस दुर्घटना की जाँच -पड़ताल व छानबीन चलती रही, परंतु इसका कोई सुराग नहीं मिल सका। कोई नहीं बता सका कि आखिर इन जहाजों एवं वायुयानों के लापता होने का रहस्य क्या है?
हालाँकि बरमूडा के इस अनुत्तरित रहस्य को अनावृत करने के लिए अगणित प्रयास -पुरुषार्थ होते रहे हैं। इस क्षेत्र ने अनेक वैज्ञानिकों , प्रकृति एवं समुद्रविदों तथा विचारकों को अपनी ओर आकर्षित किया है। वैज्ञानिकों ने जहाँ इसकी अपने प्रयोगों के माध्यम से खोजबीन की है, वहीं साहित्यकारों के लिए यह क्षेत्र रोचक कथाओं की विषयवस्तु सिद्ध हुआ है। सन् 1964 ई. में प्रख्यात लेखक चार्ल्स विर्लीज ने तो इस पर एक रोचक पुस्तक लिख डाली , जो काफी लोकप्रिय सिद्ध हुई। अनुमान के आधार पर इसे ब्रह्माण्डीय चमत्कार से भी जोड़ा जाता है। आधुनिक विज्ञानवेत्ता इसे धरती का ब्लैकहोल भी मानते हैं। वैज्ञानिक आकलन के अनुसार ब्लैक होल में गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी तीव्र होती है कि बड़े-बड़े खगोलीय पिंड एवं बड़ी बड़ी वस्तुएं इसके उदर में समा कर विलीन हो जाती हैं। वैज्ञानिक अनुमान यह भी कहते हैं कि संभवतः सुदूर ब्रह्माँड के किसी अन्य ग्रह के निवासी ब्रह्माँड के अन्यान्य ग्रहों में जाने के लिए ब्लैकहोल का प्रयोग करते हैं। बरमूडा त्रिकोण को इसी संभावना से जोड़ा गया है। समुद्र विद्या कि वैज्ञानिकों के अनुसार बरमूडा त्रिकोण में अचानक सागर खौलने लगता है और उस समय इसकी सतह पर से अथवा इसके ऊपर से जो कुछ गुजर रहा होता है , वह गायब हो जाता है। इस बारे में एक और कल्पना की जाती है कि जब कोई अदृश्य अंतरिक्षयान यहाँ आता है, तब उसके अपरिमित वेग से समुद्र खौलने लगता है और वह यान यहाँ से गुजरने वाले जहाज या विमान को पलक झपकते ही उठाकर ले जाता है।
अंततः इस ब्रह्माँडीय चमत्कार का रहस्य रसायनविदों की प्रयोगशाला तक भी जा पहुँचा है। रसायनविदों ने इस रहस्य को ‘मीथेन हाइड्रेड ‘ नामक रसायन के द्वारा सुलझाने एवं समझाने का प्रयास किया है। बरमूडा त्रिकोण के इस रहस्य को रासायनिक तत्वों से सुलझाने वाला यह प्रयोग अत्याधुनिक है। रसायन शास्त्रियों के अनुसार पर्याप्त गैस, जल, ठंड व उच्चदाब की स्थिति में हाइड्रोजन , होलियम तथा नियोन गैसों के अलावा सभी गैसें जल से क्रिया करती है। इससे हाइड्रेट यौगिक का निर्माण होता है। हाइड्रेड काफी ठंडा एवं दाबयुक्त यौगिक है। जीवन वायु आक्सीजन के अन्वेषक जोसेफ प्रीस्टले ने 1780 के दशक में ऑक्सीजन हाइड्रेट नामक यौगिक का निर्माण किया था। सन् 1810 में सर हम्फ्री डेवी ने क्लोरीन हाइड्रेट बनाया था। ये सभी हाइड्रेट यौगिक अत्यंत ठंडे थे। सन् 1928 में सोवियत श्रमिकों ने समुद्र के अंदर बिछाई गई प्राकृतिक गैस की पाइप लाइनों में शीत से सनसनाती अद्भुत बरफ जमी देखी । इसके ठीक छह वर्ष बाद अमेरिकी रसायनवेत्ता ई.जी.हेमरस्मिथ ने इस बरफ को मीथेन हाइड्रेट के रूप में पहचाना। यही वह रसायन है, जिसके माध्यम से रसायनशास्त्री बरमूडा के रहस्य को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं।
ई. जी. हेमरस्मिथ ने प्रयोग के दौरान देखा कि मीथेन हाइड्रेट या मीथेन जल परमाणुओं में दबे रहते हैं। ये यहाँ पर गैस के उच्चदाब और अत्यधिक ठंड के कारण बने रहते हैं। सन् 1920 में वैज्ञानिकों ने कजाकिस्तान के समुद्र में गैस पाइपों के अंदर जमी सरद मीथेन हाइड्रेट की एक लीटर मात्रा को जब सामान्य ताप पर लाकर रखा, तो इसका विस्तार 137 मीटर मटमैली गैस और कीचड़ सदृश पानी के रूप में हुआ। ई. जी. हेमरस्मिथ ने अपने अनुसंधानों के दौरान पाया कि चिरतुषार ही वह स्थान है , जहाँ मीथेन हाइड्रेट बनने के लिए अनुकूल तापमान व दबाव की स्थितियाँ होती है। समुद्र में मीथेन हाइड्रेट बनने के कई और भी कारण होते हैं। हेमरस्मिथ ने जब समुद्र तल पर ड्रिल किया तो एक आश्चर्यजनक घटना देखी। वास्तविकता तल से कुछ सौ मीटर नीचे एक और समुद्रतल की छाया का आभास हुआ। इस तल का आभास होने का तात्पर्य था - हाइड्रेट गैस परतों की उपस्थिति का संकेत । वैज्ञानिकों ने इसे ‘तल रूपधारी प्रतिबिंबक’ (वाटर सिमुलेटिंग रिफ्लेक्टर अथवा बी.एस.आर) का नाम दिया है। यह बी.एस.आर. समूचे विश्व में महाद्वीपीय समुद्री ढलानों के इर्द-गिर्द पाया जाता है।
मीथेन गैस को अत्यधिक सावधानीपूर्वक निकाला जाता है अन्यथा यह भरमाकर अपनी ताँडव लीला प्रदर्शित करती है। सन् 1981 में भू-रसायनविद् मैकलेवर ने पहली बार इसका संबंध बरमूडा क्षेत्र से जोड़ा । समुद्र में जहाज के लिए जल एक परिवर्तनशील माध्यम है। यह परिवर्तनशीलता जल के उछाल , खारेपन और तापमान पर निर्भर करती है। इसी कारण भारीभरकम जहाज तैरता हुआ अपने गंतव्य तक पहुँचता है। जहाज नदी में गहरा डूबकर चलता है, जबकि समुद्र के जल में यह काफी उथला डूबकर गति करता है। यह उसके घनत्व पर निर्भर करता है। ऐसी स्थिति में जब मीथेन हाइड्रेट विस्फोट होकर अचानक समुद्र जल से उठकर समुद्र में फैल जाता है तो वह अपने चपेट में जहाज को डुबा सकता है।
ऐसी स्थिति में गुबार के कारण सतह के नीचे का जल अत्यंत पतला हो जाता है अर्थात् घनत्व के एकाएक घट जाने से जहाज क्षणमात्र में ही अतल गहराइयों में चला जाता है। डूबा हुआ जहाज या विमान समुद्र की गहराइयों में खिच जाता है और वह्म्र्र्र्रँ पर मुक्त गैस के कारण उठे तलछट से ढक जाता है । इसी तरह अब तक चालीस जहाज समुद्र का गहराइयों में समा चुके हैं।यह गैस ऊपर उड़ते वायुयान को भी अपने उदर में समा लेती है। मीथेन के मुक्त होने के पश्चात् यह अनवरत वायुमंडल में फैलती रहती हैं विमान दो तरह से इस गैसीय बादल की उलझन में फँसता है। पहला तो मीथेन साँद्र होने के कारण विमान में ऑक्सीजन का अभाव पैदा कर देती है और विमान का इंजन काम करना बंद कर देता है। इसी के साथ यह विमान प्राणहीन पंछी के समान समुद्र में गिरकर उसकी गहराई में खो जाता है। दूसरा संकट है कि सतह से ऊपर उठने वाले गुबार में 5 से 10 प्रतिशत मीथेन होती है। यह ज्वलनशील ने के कारण इंजन का एकदम गरम करे निष्क्रिय कर देती है। अंततः विमान का वही हाल होता है।
परंतु यह सब होता क्यों है? इस सवाल का यथार्थ जवाब तो प्रकृति के अनसुलझे रहस्यों में ही निहित है। प्रकृति सदा ही परिस्थितियों को परिवर्तित करती रहती है।भू-स्खलन भी एक परिवर्तन है, जो न केवल पहाड़ों पर्वतों में होता है, बल्कि समुद्र की तलहटी में भी होता है। यह मीथेन हाइड्रेट गैस की परतों को तोड़कर मीथेन को मुक्त करता है। अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण के अनुसार बरमूड़ा की समुद्र तलहटी में मीथेन का अकृत भंडार भरा पड़ा है। यही प्राकृतिक विभीषिकाओं का रूप धारण कर विपदाओं का न्योता देता रहता है। फिर भी अपने अनुसंधानों के निष्कर्ष पर अभी तक सारे वैज्ञानिक एकमत नहीं हो पाए हैं - अगणित वैज्ञानिक प्रयोगों के पश्चात् भी कई तरह के प्रश्न मुँह बाए खड़े हैं, जिनका कोई हल-समाधान नहीं मिल पा रहा है।विज्ञानविद् भी मानते हैं कि प्रकृति के रहस्यों का भेदना अति कठिन है। बरमूडा त्रिकोण इस बात का प्रमाण है , जो इस सच्चाई का बोध कराता है कि मानवीय बुद्धि से परे भी बहुत कुछ है, जो अदृश्य -अनजाना होने के बावजूद हमें सत्य की झलक देता है।