विषाक्त होता जा रहा है हमारा खानपान

January 2000

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जिंदगी जब भाग-दौड़ से भरी हो तो सब कुछ उलट पुलट जाता है। इस अस्त−व्यस्त उलट-पुलट में हर एक को हर काम के लिए समय है। नहीं है समय तो सिर्फ खाना पकाने और निश्चितता से खाने का। ऐसा लगता है कि व्यस्तता भरी भागदौड़ ने अपनी सारी चोटें मिलजुलकर भोजन पद्धति पर की हैं, आहार प्रक्रिया को तहस-नहस कर डाला है, जबकि जीवन को स्वस्थ एवं नीरोग बनाए रखने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण आहार ही है। शरीर की ज्यादातर बीमारियाँ असंगत आहार से ही पनपती और बढ़ती है। आहार संयम स्वास्थ्य रक्षा का मूल आहार है। यदि पथ्य-अपथ्य पर ध्यान रखते हुए पोषक आहार ग्रहण किए जाए तो रोगों से पूरी तरह बचाव संभव है। चरक संहिता में महर्षि चरक के वचन हैं -

षटत्रिशतं सहस्त्राणि रात्रीणाँ हितभोजनः। जीवत्थानातुरो जंतुर्जितात्मा संमतः शताम्॥

अर्थात् -संतुलित पथ्य भोजन ग्रहण करने वाला संयमी व्यक्ति छत्तीस हजार रात्रि अर्थात् सौ वर्ष तक पूर्ण नीरोग अवस्था में जीवित रह सकता है।

आज तो यह बात जैसे पूरी तरह से भुला दी गई है। फैशन , स्वाद एवं अभिजातीय सुविधा के कारण ऐसे आहार का प्रचलन बढ़ रहा है। जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत हानिकारक है।इन दिनों खाने-पीने की ज्यादातर वस्तुएँ टीन या प्लास्टिक के डिब्बों में अथवा बोतलों में बंद आती है। खानपान की यह संस्कृति बड़ी तेजी से समाज के सभी वर्ग के लोगों में फैलती जा रही है।समाजशास्त्रियों के अनुसार हमारी इस नई शैली पर पश्चिम का प्रभाव है, परंतु वहाँ सरकार एवं उपभोक्ताओं तक सही वस्तु ही पहुँचती है। निर्माण प्रक्रिया में हर स्तर पर गुणवत्ता की कड़ी जाँच होती है। उसे कब किस निर्माता ने , किन किन चीजों का कितना-कितना मिलाकर रखना चाहिए और कब तक खा लेना चाहिए आदि बात साफ साफ लिखी होती है। यदि कोई किसी चीज को खाकर बीमार पढ़ जाए तो निर्माता की बहुत बदनामी होती है। कई बार तो उसे अपना व्यवसाय बंद करने पर विवश होना पड़ता है।

अपना देश तो इस संदर्भ में सोया हुआ है। उसकी यह आलस्य निद्रा कब टूटेगी, पता नहीं? ट्रेड -नामों से बिकने वाले पेयजल की शुद्धता की गारंटी नहीं दी जा सकती। एक गणना के अनुसार देश में करीब साढ़े तीन हजार प्रकार के बोतल बंद पेय पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त छोटे-छोटे शहरों के अपने शीतल पेय हैं, जो अत्यंत हानिकारक ढंग से बनाए जाते हैं। खाने पीने की जो चीजें डिब्बों में बंद की जाती है, उनमें एथिल सोडियम क्लोराइड, एसिटिक एसिड तथा संक्रास आदि तत्व मिलाए जाते है। जिस एक खास मिश्रण का प्रयोग ज्यादा मात्रा में किया जाता है। उसे प्रिजर्वेटिव कहते हैं। इससे खाने की चीज बहुत दिनों तक बिगड़ने से बची रहती है।कुछ खाद्य पदार्थों में नाइट्रइड का इस्तेमाल होता है। तो कुछ में टाँक्सिक व आर्गेनिक रसायन होते हैं। कुछ चीजों में ऐसी एंटीबायोटिक दवाओं का भी इस्तेमाल होता है,जो डिब्बों में बंद कीटाणुओं का नाश तो करती है, पर उसके सेवन से बीमार हुए मनुष्य का उपचार करना मुश्किल हो जाता है।इन बनावटी पदार्थों के इस्तेमाल से कितना नुकसान हो सकता है। यह तो उपभोक्ता भी नहीं जान पाते।

फास्टफूड का प्रचलन जिस तेजी से पनपा है, उसी तेजी से उसकी कमियाँ भी उभरकर आई हैं। इसके उपयोग से पाचनतंत्र अत्यंत दुष्प्रभावित होता है। फास्टफूड यानि बर्गर सैंडविच चाऊमिन आदि अनेक बीमारियों को जन्म देते हैं। इन खाद्यपदार्थों में डाले जाने वाले रेडीमेड मसालों से तरह तरह के चर्मरोग एवं एलर्जी पैदा होती हैं, जिसमें रेशे का नामोनिशान नहीं होता। इस संदर्भ में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि मैदे से निर्मित चीजें खाने से वे आँतों में चिपक जाती हैं।

कुछ चिकित्सकों ने तो इसके जमने की तुलना सीमेंट से की है। जिस तरह सीमेंट का जमने के बाद छुड़ाना आसान नहीं होता, उसी तरह मैदे से बनी चीजें भी आँतों में जग जाती है। एवं उनकी कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव डालती है।इससे आंतों की अवशोषण क्षमता तथा इसके आकुँचन -प्रकुँचन बुरी तरह प्रभावित होते हैं। कभी−कभी तो इस चक्कर में आँतों की अंकुर संरचनाएँ अपनी कार्यक्षमता पूरी तरह से खो बैठती है। फलस्वरूप पित्त की थैली में पथरी , हृदय रोग बद्ध कोष्ठ, मधुमेह आँतों का कैंसर तथा बवासीर जैसे रोगों के होने की संभावना प्रबल हो जाती है।

इन खाने पीने की चीजों का आकर्षक बनाने के लिए, उनमें तरह तरह के स्वाद व सुगंध उत्पन्न करने के लिए अनेक रंग व रसायनों का उपयोग किया जाता है। जो काफी हानिकारक होते हैं। इनमें से अनेक पदार्थ एक दूसरे से रासायनिक क्रिया भी करते हैं। इससे नए रासायनिक पदार्थ बनते हैं। जा अपन मूल रूप में अधिक खतरनाक होते है। हालाँकि इस सिलसिले में 1954 में इसमें कुछ परिवर्तन करके इस सूची में कुछ और रंग जोड़ दिए गए, लेकिन फास्टफूड निर्माताओं एवं विक्रेताओं द्वारा प्रायः इन सभी वर्जित रंगों का इस्तेमाल बहुतायत में किया जा रहा है। शुरू-शुरू में तो इसकी हानियों का पता नहीं चलता, पर कुछ समय बाद इसके गलत नतीजे हमारे रक्त में दिखाई देने लगते हैं। मिठाइयों में पीले रंग का प्रयोग एवं बोतल बंद अचार में लाल रंग का मिश्रण आम बात है।विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार इन रंगों के प्रयोग से विभिन्न प्रकार की एलर्जी दमा व मानसिक दुर्बलता पैदा होती है।

आहार इनसानी जिंदगी की निहायत अनिवार्य जरूरत है। इसके महत्व को समझते हुए इसकी पूर्ति उचित तरीके से ही की जानी चाहिए। ऐसी भी बहुत सी वस्तुएँ हैं, जो आज की भाग दौड़ से भरी जिंदगी में आहार की जरूरत को सही तरीके से पूर्ण कर सकती है। इस क्रम में डिब्बे में बंद सब्जियों के स्थान पर हरी सब्जियों का उपयोग किया जा सकता है। फलों का सेवन न सिर्फ आहार की आवश्यकता पूरी करता है वरन् सेहतमंद रहने का भी अद्भुत नुस्खा है। अभी हाल में हुए नवीनतम शोध -अनुसंधानों से यह पता चला है कि फलों का सेवन न सिर्फ आहार की जरूरत पूरी करता है बल्कि इसके नियमित इस्तेमाल से कैंसर, हृदयरोग और मानसिक तनाव जैसे रोगों का खतरा कम होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि दवाओं के माध्यम से नहीं बल्कि प्राकृतिक स्रोतों से ही विटामिन व अन्य खनिज पदार्थ शरीर में पहुँचने चाहिए।

बोतलबंद पेय के स्थान पर अच्छा हो, गाय का दूध उपयोग में लाया जाए। यह अपने आप में पूर्ण आहार भी है। आयुर्वेद का भी मत है-

गोक्षीरमनभिष्यंदी स्निग्धं गरुरसायनम् । रक्तपित्तहरं शीतं मधुरं रसपाकयो॥ जीवनीयं तथा वातपित्तध्नं परमं स्मृतम्।

अर्थात् गौ का दुग्ध अभिष्यंदी नहीं (रसबहा नाड़ियां को नहीं रोकता) स्निग्ध है, भारी है, रसायन है, रक्त पित्त दूर करता है। शीतल ह रस व विपाक में मीठा है, जीवनदाता है। वायु व पित्त को शाँत करने वाला है।

यदि हम गौर कर सकें तो ऐसा नहीं है कि फास्टफूड के विकल्प हमारे आसपास मौजूद नहीं है। बस आवश्यकता थोड़ी स्वचेतनता की है, तभी हम आहार के महत्व को समझकर आज के विषाक्त खानपान से बच सकते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118