पाप पहले आकर्षक लगता है। फिर आसान हो जाता है। इसके बाद आनन्द का आभास देने लगता है तथा अनिवार्य प्रतीत होता है। क्रमशः वह हठी और ढीठ बन जाता है। अन्ततः सर्वनाश करके हटता है।