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January 1992

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अहोकष्टयदस्माभिः पर्वराज्यमनुष्ठितम् इतिपख्यात्पयाज्ञातंयोगान्नारितपरंसुखम् निर्जितेन्द्रियवर्गस्तुत्यक्स्वासंगशेषतः मनोब्रह्मणि संघास्येतज्जयेपरमोजयः मार्कण्डेय पुराण

अब मैं जितेन्द्रिय होकर लोभ मोह को हटाकर केवल परब्रह्म में मन लगाऊंगा। जिसने ब्रह्म को प्राप्त कर लिया उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया। हाय, कैसा खेद है? मैंने इतनी आयु ऐसे ही लोभ और अहंकार में गँवादी। अब मुझे पता चला है कि योग की अपेक्षा इस जीवन के और कोई परम सुख नहीं है।


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