ईर्ष्यास्पद से अधिक हानि (Kahani)

January 1992

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जंगल में गाय और घोड़ा घास चर रहे थे । घोड़े को ईर्ष्या हुई कि वह गाय के सींगों के डर से अच्छी घास नहीं खा पाता किसी तरह इस पर काबू पाया जाय। तभी वहाँ मनुष्य आ निकला और उसने दोनों को बेबस ललचायी दृष्टि से देखा । घोड़ा मनुष्य के पास आकर बोला देखते क्या हो गया का मीठा दूध पीकर अपनी भूख मिटाओ ।

मनुष्य ने विवशता सामने रखी वह बोला पर वह तो मुझसे तेज दौड़ सकती है, तब घोड़े ने कहा मेरी पीठ पर सवार हो जाओ। मैं गाय से तेज दौड़ सकता हूँ ।

मनुष्य घोड़े की पीठ पर सवार हो गया उसने पहिले घोड़े को गुलाम बनाया और फिर बाद में गाय को काबू में लिया । ईर्ष्या करने वाले पहले और ईर्ष्यास्पद से अधिक हानि तथा कष्ट उठाते हैं ।


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