दो बाज एक ही पेड़ पर रहते थे । दोनों शिकार मार कर लाते और लौट कर उसी पेड़ पर बैठकर खाते ।
एक दिन बाज ने साँप पकड़ा दूसरे के हाथ चूहा लगा। दोनों अधमरे थे । दोनों ने सुस्ताकर खाने के लिए पंजों को ढीला छोड़ दिया ।
तनिक सा अवसर मिला तो साँप घायल चूहे को निगलने का पैंतरा दिखाने लगा । दोनों बहुत हँसे वे सोचने लगे कि देखो इन मूर्ख प्राणियों की हालत स्वयं मरने जा रहे हैं, पर फिर भी द्वेष का स्वभाव और पाने का लोभ छूटता नहीं है ।
गाँधी जी की बचपन की बात है । बुरी संगत में पड़ कर किसी से कर्ज ले लिया । जब कर्जदार तंग करने लगा तो घर से थोड़ा चुरा लिया और कर्ज चुका दिया।
कर्ज का भार तो हल्का हो गया पर गाँधी जी मन में चोरी के पश्चाताप से झुलसने लगे । सोचा पिता जी से बता दें । किन्तु सीधे जाकर कहने का साहस नहीं हो सका । फिर एक पत्र लिखा , जिसमें अपना दोष स्वीकार किया और भविष्य में वैसा न करने का दृढ़ संकल्प भी व्यक्त किया । पुत्र की सच्ची आत्मा ने पिता को हर्षित कर दिया । उन्होंने सच्चे दिल से उस अपराध को क्षमा कर दिया । गाँधी जी ने शिक्षा ली-सच्चे हृदय से अपराध स्वीकार कर लेने से मन का मैल धुल जाता है ।
सुगंधित वस्तुओं के समीपवर्ती वस्तुएँ भी सुगंधित हो जाती है । जिसके होठों पर सदैव मुसकान ही खिलती रहती है, उद्विग्नता , खीज, निराशा जैसे मानसिक असंतुलन उनके पास नहीं फटकते । ऐसे स्वभाव वाले सदा अधिक मात्रा में अधिक अच्छे स्तर का काम करने और सफलताएँ अर्जित करने में प्रथम रहते हैं ।
प्रसन्नता को सफलता का सूचक माना जाता है । हँसते-हँसाने का स्वभाव बना लेना उत्साह , संतुलन और साहस का अभ्यास बढ़ा लेने जैसा है । यह एक मानसिक टॉनिक है जिससे निरंतर नयी शक्ति उभरती रहती है । अच्छी आदत के रूप में स्वभाव का अंग बन जाने पर इससे व्यक्तित्व की प्रखरता में चार चाँद लग जाते हैं ।