तनाव मुक्ति समय साध्य है, किन्तु संभव है।

January 1992

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तनाव उत्तेजना, उद्विग्नता जैसे शब्द व्यक्ति की कार्य क्षमता व दक्षता को घटाने वाले हैं। जीवनशक्ति रोग निरोधक क्षमता एवं परिस्थितियों से ताल मेल बिठाने वाली मानसिकता की बाह्य उद्दीपन तनावग्रस्त बना देते हैं। इसका आभास प्रथम चरण में नहीं होता बल्कि जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है और लक्षण हमारे स्वभाव, चिंतन, चरित्र, व्यवहार में परिलक्षित होने लगते हैं, घातक रोगों के रूप में परिणति निकलने लगती है, तब उस ओर ध्यान आकर्षित होता है।

जब तनाव रूपी बन्दूक का घोड़ा दब जाता है तब व्यक्ति समाधान ढूँढ़ने एवं पाने के लिए अधीर और बेचैन हो जाता है। कुछ लोग तनाव से मुक्त होने के लिए अत्यन्त बेचैन हो जाते हैं और वह विधा खोजने की कोशिश करते हैं जिससे उनको तत्काल समाधान मिले। भले ही कुछ समय के लिए अन्तराल को हानि ही क्यों न उठानी पड़े। ऐसे लोग नशीले पदार्थ का सेवन करने में कोताही नहीं बरतते। शराब, गाँजा, चरस, ट्रैंकुलाइजर्स, हेरोइन एवं ब्राउन सुगर के सेवनकर्ता ऐसे ही व्यक्ति बनते हैं। तनाव से समझौता स्थापित करने का यह सबसे निम्नतम स्तर का प्रयास है। आँकड़े बताते हैं कि इस नशेबाजों की तुलना में नशामुक्त व्यक्ति लम्बी आयु बिताते हैं।

मनोविज्ञान के प्राध्यापक डब्ल्यू. पी. वेल्स तनाव मुक्ति की ऐसी विधा को महत्वपूर्ण मानते हैं जिसमें किसी बाह्य साधन पर अवलम्बित न रहना पड़े। अपितु आत्म चेतना को जगाकर धीरे-धीरे शिथिल होने का प्रयास किया जाय। जब व्यक्ति तनाव की चपेट में होता है तो उसकी शिकायत रहती है कि कुछ विशेष कार्य करने के लिए वह अपने आपको अक्षम सा पाता है। परिणामतः वह बाह्य साधनों यथा टेलीविजन, फिल्म आदि का सहारा लेता है किन्तु अशाँति और भी बढ़ती देखी जाती है। तनाव रहित होने, थकान दूर करने वाले विभिन्न योगाभ्यास ऊर्जा खपत करने की अपेक्षा बचाते हैं। टहलने या तैरने जैसे कुछ शारीरिक व्यायाम शरीर की चयापचयिक दर (मेटाबॉलिक रेट) धीमी करते हैं फलस्वरूप शरीर तनावमुक्त अनुभव होता है। विभिन्न प्रकार के आसनों के बाद रोग निरोधक क्षमता एवं शिथिलीकरण की गति बढ़ती जाती है। कोई भी व्यक्ति बिना आराम किये लम्बे समय तक कार्य नहीं कर सकता, ठीक उसी प्रकार मानसिक शिथिलीकरण की भी नित्य आवश्यकता पड़ती है।

वैज्ञानिक दृष्टि से शिथिलीकरण का अर्थ है-त्वचा से जुड़े तन्तु समूहों को विश्रान्ति प्रदान करना। तनाव से इनमें सिकुड़न आ जाती है। यही कारण है कि तनावग्रस्त लोगों के चेहरे पर झुर्रियाँ जल्दी पड़ती देखी जाती हैं। यह शिथिलीकरण मात्र बैठने, सोने से पूरा नहीं होता अपितु इसके लिए अपने आपको शिथिलीकरण की मानसिकता से भी गुजरना पड़ता है। मधुर एवं रुचिकर संगीत का श्रवण भी माँसपेशियों को शिथिल करता है। इसका तात्पर्य है किसी भी स्थान पर कभी भी प्रयुक्त शिथिलीकरण की चेतनात्मक विधि विशेष लाभदायक है। यह ऐसी कला है जो आन्तरिक तनाव से हमको सतत् मुक्त रखती है।

आत्मसमीक्षा एवं आत्मावलोकन की कुछ विधायें भी उपयोगी हैं। किसी बाह्य ध्वनि संकेत शब्द या चित्र पर ध्यान केन्द्रित करना, तनाव पैदा करने वाले विचारों, भावनाओं एवं कल्पनाओं को अभ्यास द्वारा छोड़ते चले जाना, शरीर की आराममय स्थिति जिसमें शरीर शिथिल अनुभव करें, एवं बाह्य वातावरण से अपने आपको दूर रखने का अभ्यास, ये चार उपाय शिथिलीकरण के चार आयाम हैं। भारतीय शिथिलीकरण एवं योग पद्धति के आधार पर जर्मनी के चिकित्सक डॉ. राँनी विल्सन व उनके सहायकों ने ऑटोजेनिक ट्रेनिंग के नाम पर एक विधा विकसित की है। इसमें छह चरणों में शिथिलीकरण सम्पन्न किया जाता है। सर्वप्रथम यह भावना की जाती है कि “हमारे अंग अवयव क्रमशः हल्के हो रहे हैं। हमारे पैर हल्के हो रहे हैं, अंग अवयव धीरे-धीरे गरम हो रहे हैं” “हृदय की धड़कन गति कम होते-होते शाँत हो गई है” “श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया धीमी एवं गहरी हो गई है” “कमर का ऊपरी हिस्सा धीरे-धीरे गरम हो रहा है एवं मस्तिष्क का सामने वाला भाग शीतल एवं शान्त हो रहा है,” ये स्वसंकेत (ऑटोसजेशन) दिए जाते हैं।

प्रत्येक चरण के साथ गहरी श्वास लेकर अपने आपको निर्देश दिये जायँ कि शिथिलीकरण का स्तर और गहराता जा रहा है। जर्मनी के चिकित्सकों ने इस विधा का प्रयोग हृदयाघात के रोगियों पर किया जिनकी संख्या नौ सौ थी। इनमें से नब्बे प्रतिशत लोग व्यक्तित्व दृष्टि से ‘ए’ वर्ग में आते थे जो मूलतः क्रोधी, आतुर, आवेशग्रस्त महत्वाकाँक्षी एवं अनसुलझे मस्तिष्क वाले माने जाते हैं। इन पर सतत् चार वर्ष तक शिथिलीकरण ध्यान एवं प्रार्थना का प्रयोग होता रहा और मात्र तीन प्रतिशत लोग ही ऐसे रहे जिन्हें पुनः आगे हार्ट अटैक होने की संभावना बनी रही। शेष पूर्णतः स्वस्थ हो गये। अभ्यास सतत् जारी रहने से वे अक्षुण्ण स्वास्थ्य के स्वामी बने।

आत्म निरीक्षण के कुछ सूत्र भी शिथिलीकरण प्रक्रिया में सहायक सिद्ध होते हैं। तनाव उत्पन्न करने वाले विचारों, भावनाओं-कल्पनाओं एवं मान्यताओं की एक सूची बनाई जाय, जिन्हें “स्ट्रेस ट्रिगर” नाम उनने दिया है। पूरी एकाग्रता से यह निरीक्षण किया जाय कि वे कौन से क्षण हैं जिनमें तनावजन्य चिन्हों के दीखने के साथ-साथ हृदय गति बढ़ाने अथवा नशीले पदार्थ लेने, सिगरेट अथवा चाय पीने की ललक मन में से उठती है। ऐसे क्षणों एवं परिस्थितियों का निरीक्षण करने के बाद उस समय विधेयात्मक विचारों की सेना तैयार रखनी चाहिए। मन विधेयात्मक विचारों की सेना तैयार रखनी चाहिए। मन विधेयात्मक चिंतन से ही सही दिशा में चलता है। तनावजन्य स्थिति में भी यह भावना कि “मैं दिनों दिन तनाव से मुक्त हो रहा हूँ एवं उन सभी परिस्थितियों को समझ कर उनसे निपटने में सक्षम हूँ जो तनाव उत्पन्न करती हैं” व्यक्ति को भावनात्मक टॉनिक प्रदान करती हैं। मनोबल व आत्मबल बढ़ाती हैं।

परमसत्ता के प्रति समर्पण भाव से की गयी प्रार्थना एवं ध्यान योग की प्रक्रिया भी तनाव मुक्ति में अत्यन्त सहायक है। इससे शरीर में माँसपेशियों में ही नहीं स्नायु कोशाओं में भी शिथिलीकरण प्रक्रिया को बढ़ाने वाले रसायन रक्त में बढ़ने लगते हैं। इसके साथ विशिष्ट आवृत्ति वाले विशेष रूप से गायत्री मंत्र का उच्चारण एवं अनहत नाद का श्रवण शरीर के तनाव को बड़ी तेजी से तनाव रहित करता है। भारतीय चिंतन एवं दर्शन वस्तुतः सही अर्थों में शिथिलीकरण की ही प्रक्रिया को चिकित्सा बताता है।

शिथिलीकरण में बायोफीडबैक प्रक्रिया भी अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है। बायोफीडबैक का तात्पर्य है व्यक्ति की भौतिक शरीर से संबंधित विभिन्न गतिविधियों को रिकार्ड करना एवं उसकी इन प्रक्रियाओं का “फीडबैक” तत्क्षण उसे देना ताकि ज्ञात हो कि उसके अन्दर क्या परिवर्तन हो रहे हैं। उदाहरण के लिए तनाव से उत्पन्न सिरदर्द के रोगी के मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड लगाकर-मशीन पर ध्वनि या प्रकाश के सिग्नल द्वारा परिवर्तन का प्रदर्शन उसी रोगी के सामने करना जिससे वह ऐच्छिक मानसिकता बनाते हुए भावनात्मक संक्षोभ तनाव को क्रमशः कम करके सिर दर्द कम कर सकता है। जैसे-जैसे व्यक्ति तनावमुक्त होता जाता है “फीडबैक” मशीन में ध्वनि एवं प्रकाश पट्टियों में परिवर्तन आता जाता है। तनावजनित विचारों की जैसे ही बढ़ोत्तरी होती है, मशीन तनाव को भी प्रदर्शित करती है। क्रमशः की जाने वाली यह प्रक्रिया व्यक्ति को शिथिलीकरण की महत्ता व उसमें निज के पुरुषार्थ की भूमिका बताने, आत्मशक्ति के जागरण के प्रयासों के लिए प्रेरित करती है किन्तु सही अर्थों में व्यक्ति शिथिल (रिलेक्स) बिना मशीनी सहायता के भी स्वयं को कर सकता है ।

इसके अतिरिक्त शिथिलीकरण की अन्य विधाओं में प्राकृतिक दृश्यों का सान्निध्य, पेड़ पौधों के साथ सामीप्य द्वारा भावनात्मक पोषण की व्यवस्था, पशु-पक्षियों को पाल पोसकर बड़ा करने की हॉबी, समाज सेवा के विभिन्न योग जैसे कुछ उपक्रम आते हैं। व्यक्ति कितनी भी विपरीतता में हो लेकिन यदि वह मानसिक रूप से सुखद परिस्थितियाँ विनिर्मित कर ले तो सहज ही अपने आपको तनावमुक्त कर सकता है। तनावजन्य स्थिति में भी अपना विकास, संगीत, चित्रकारी, शिल्प, रचनात्मक क्रियाकलाप, कविता, लेख, भाषायी ज्ञान द्वारा करते हुए उस दिशा में सतत् सोचने-प्रवृत्त होने से सहज ही तनावमुक्त हुआ जा सकता है। पूर्वाग्रहों, मनोविकारों, पिछले जीवन में बीते अप्रिय घटना प्रसंगों को भुलाकर अपना भविष्य ऊँचा देखने, ऊँचा सोचने, एवं ऊँचा करने का अदम्य उत्साह उल्लास व सतत् मुसकराता चेहरा तनाव मुक्त करके व्यक्ति की प्रतिभा का जागरण करने में सहायक सिद्ध होता है।

शाँतिकुँज हरिद्वार के अंतर्गत कार्यरत-ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में “तनाव प्रबंध” जैसे महत्वपूर्ण विषय पर विशिष्ट प्रकार के प्रयोग हो रहे हैं। विभिन्न बायोफीडबैक मशीनों, रक्त परीक्षणों, मनोवैज्ञानिक शोधों के निष्कर्ष बताते हैं कि यदि व्यक्ति अपने आपका निरीक्षण करने लग जाय, मनोविकारों के सिगनल्स को पहचानने लगे और विधेयात्मक विचारों के सेना खड़ी कर ले तो वह सहज ही तनावमुक्त रह सकता है। प्रार्थना, ध्यान, साधना व शिथिलीकरण के अभ्यास के साथ-साथ गायत्री मंत्र का ध्यान सहित मानसिक जप भी सोने में सुहागा सिद्ध होता है, ऐसे प्रयोग बताते हैं। प्रातः सायं जाग्रत प्राणमय वातावरण में चल रहे दैनन्दिन क्रम में सम्मिलित होना, श्रेष्ठता की प्रेरणा देने वाले गीतों का श्रवण भी तनावमुक्ति का एक श्रेष्ठतम उपाय है। इतना यदि नियमित रूप से किया जा सके तो समझना चाहिए कि व्यक्ति के जीवन में तनावजन्य परिस्थितियाँ कभी आएँगी ही नहीं । नवयुग के लिए आत्मबल सम्पन्न महामानव जन्में, इसके लिए तनाव जैसी युग व्याधि का उपचार इस प्रकार विचारना ही होगा।


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