नदी में रीछ (Kahani)

January 1992

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नदी में रीछ बहता जा रहा था । किनारे पर खड़े साधु ने समझा यह कंबल बहता आ रहा है । निकालने के लिए वह तैर कर उस तक पहुँचा और पकड़कर किनारे की तरफ खींचने लगा ।

रीछ जीवित था प्रवाह में बहता चला आया था । उसने साधु को जकड़ कर पकड़ लिया ताकि वह उस पर सवार होकर पार निकल सके । दोनों एक दूसरे साथ गुत्थमगुत्था कर रहे थे । कोई नीचे कोई ऊपर किनारे पर खड़े दूसरे साथी साधु ने पुकारा। कम्बल हाथ नहीं आता तो उसे छोड़ दो और वापस लौट आओ।

जवाब में उस फँसे हुए साधु ने कहा मैं तो कम्बल छोड़ना चाहता हूँ पर उसने तो मुझे ऐसा जकड़ लिया है कि छूटने की कोई तरकीब नहीं सूझती।

व्यसनों को लोग पकड़ते हैं पर कुछ ही दिन में वे उन्हें अपने शिकंजे में कस लेते हैं और छोड़ने पर भी छूटते नहीं।


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