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January 1992

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“मूर्ख मन्त्रः खल प्रीतिः पध्यद्वेष प्रमादिता प्रभाविष्णोविरोधश्च विधि वैमुख्य लक्षणम्” -क्षेमेन्द्र

अपने जीवन पथ निर्धारण करने आदि के लिए यदि मूर्खों को गुरु बनाया जाकर उनसे मंत्रणा प्राप्त एवं तदनुसार व्यवहार करने, दुष्टों कुकर्मी-समाजविरोधी कार्य करने वालों से प्रीति-अर्थात् उनको सहयोग कर उनका समर्थन करना , सभ्य आहार को त्याग कर अभक्ष्य को भक्षण करना , समर्थ सद्विचार वाले, सद्कर्म में रत व्यक्ति के अनुकूल न चलना तथा सद्कार्य परोपकार परपीड़ाहरण के कार्य में आलस्य, उदासीनता अपनाना मनुष्य के भाग्य विहीन होने के लक्षण है।


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