मैं गरीब हुआ या दुखी (Kahani)

April 1991

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‘लू’ नगर की एक पिछड़ी बस्ती में रहते थे, दार्शनिक यूआन सीन। फूस की झोंपड़ी, टूटा छप्पर, गीला फर्श व बाँस से बनी खिड़की। ऐसे टूटे-टूटे घर में वे रहते थे और फुर्सत के वक्त मस्ती से भरे हुए इकतारा बजाया करते थे।

अमीर त्सी कुँग अपनी शानदार बग्घी में बैठकर उनसे मिलने गये। गली इतनी छोटी थी कि बग्घी उस में घुस ही न सकी। उन्हें पैदल जाना पड़ा।

यूआन सीन अतिथि का स्वागत करने दरवाजे पर आये। फटा जूता, पत्तों की टोपी, पुराने कपड़े पहने उन्हें देखकर कुँग ने कहा- ओह सन्त आप इतने दुखी, दरिद्र, संकट ग्रस्त।

यूआन मुसकराये और बोले-मैंने सुना है-धन के अभाव में मनुष्य गरीब भर रहता है। दुखी वे हैं जो अज्ञानग्रस्त हैं। बताओ तो- मैं गरीब हुआ या दुखी?

त्सी कुँग सिटपिटाये से एक कोने में खड़े थे।


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