एक साधु नदी तट पर बैठा हुआ माला जप रहा था। पास बैठे एक ब्राह्मण ने जप का कारण पूछा तो उसने बताया स्वर्ग प्राप्ति के लिए।
ब्राह्मण भी साधु के पास ही बैठ गया। वह एक एक मुट्ठी बालू नदी में डालने लगा। पूछने पर बताया कि नदी का पुल बनाऊँगा उस पर होकर पार जाऊँगा।
साधु ने कहा मित्र पुल इस प्रकार नहीं बनता उसके लिए इंजीनियर, श्रमिक, सामान एवं आवश्यक धन जुटाना पड़ेगा। बालू डालने भर से पुल नहीं बँध सकता।
उलटकर ब्राह्मण बोल मंत्र माला जपने से स्वर्ग कैसे मिल जायगा। उसके लिए संयम, ज्ञान एवं परमार्थ जैसे पुण्य भी तो करने पड़ेंगे।
साधु ने अपनी भूल समझी और कर्मयोगी बन गया।
एक जिज्ञासु ने किसी ज्ञानी से पूछा, मनुष्यों की बनावट तो एक जैसी है। फिर उनमें से कुछ पतन के गर्त में गिर कर डूब क्यों जाते हैं।
ज्ञानी ने दूसरे दिन शिष्य को बुलाया और उत्तर बता देने का वचन दिया। नियत समय दोनों समीपवर्ती तालाब के किनारे चलने की योजनानुसार तैयारी करने लगे।
ज्ञानी के पास दो कमंडलु थे उनमें से एक साबुत था। दूसरे के पैंदे में छेद था। दोनों जिज्ञासु को दिखा दिए।
साबुत कमंडलु पानी में फेंका गया तो वह लगातार तैरता रहा डूबा नहीं।
इसके बाद दूसरा कमंडलु फेंका गया। उसके पैंदे में पानी भर गया और कुछ ही दूर तैर कर पानी में डूब गया।
ज्ञानी ने जिज्ञासु से पूछा दोनों कमंडलुओं की भिन्न-भिन्न परिणति का क्या कारण हुआ?
जिज्ञासु ने सहज भाव से बता दिया कि जिसके पैंदे में छेद था उसमें बाहर का पानी भर गया और वह डूब गया।
ज्ञानी ने इसी उदाहरण का हवाला देते हुए कहा कि जिसके पैंदे में छेद था वही डूबा। इसी प्रकार जिस मनुष्य में असंयम के दोष होते हैं, उसी से बाहर की दुष्प्रवृत्तियाँ उसमें घुस पड़ती हैं और उसे डुबा देती हैं।
जिज्ञासु समझ गया कि अपने व्यक्तिगत दोष दुर्गुणों से ही संसार की दुष्प्रवृत्तियों के चपेट में आता और डूब जाता है। जिनमें छिद्र नहीं हैं, वे तैरते हैं और पार उतरते हैं।