अपूर्व अनुभव दिया (Kahani)

April 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मानवतावादी दार्शनिक एलवर्ट श्वाइत्जर एक बार अमेरिका गये। उनके सम्मान में अमेरिका से सात वरिष्ठ नेता आये। स्वागत गोष्ठी में एक बड़ा केक रखा गया।

अमेरिकी शिष्टाचार के अनुसार ऐसे अवसरों पर सम्मानित अतिथि अपने हाथ से केक काटते हैं और सभी लोग उसे खाते हैं।

अनुरोध के अनुसार श्वाइत्जर को सात अतिथियों के लिए और एक अपने लिए कुल आठ टुकड़े काटने थे। पर उन्होंने नौ टुकड़े काटे। एक अधिक काटने का कारण पूछने पर उन्होंने बताया यह उस महिला के लिए है जिसने मेहनत करके इतना सुन्दर और स्वादिष्ट केक बनाया है। भला उसे हम लोग कैसे भुला सकते हैं?

कलात्मक ढंग से सजाए गए दीपों की प्रकाश माला के बीच खड़े विठोबा की अपूर्व शोभा थी। मूर्ति की मुसकराहट में कुछ विशेष था कुछ नितान्त अद्भुत। जिसके स्पर्श की सिहरन ये दोनों भी अनुभव किए बिना न रहे। मूर्ति के मूक स्वर कह रहे थे मेरे सान्निध्य ने साधारण से मानवों को एकनाथ, तुकाराम, नामदेव, ज्ञानेश्वर रूप में गढ़ा है। अभी न जाने कितने और गढ़े जाएंगे। आरती के स्वरों के साथ अनेकानेक भावनाएँ बरबस-पिघल कर भाव बिन्दुओं के रूप में पिघल उठीं।

आरती की समाप्ति पर वे दोनों मन्दिर परिसर के बाहर निकले। मित्र महोदय उनका हाथ थामे कह रहे थे, आज तुमने मुझे अपूर्व अनुभव दिया रानाडे। तुम्हीं ठीक हो रामचन्द्र-प्रतीक के बिना प्रतीक्य बोध सम्भव नहीं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles