कौडिन्य ऋषि भारत में ही जप ध्यान में लगे रहते थे। उन्हें एक बार विदेश के अपरिचित लोगों को धर्म ज्ञान कराने की इच्छा हुई। वे मलेशिया क्षेत्र में गये और उससे लगे हुये देशों में धर्म प्रचार का काम करते रहे। कहते है कि बर्मा से लेकर इण्डोनेशिया तक के क्षेत्र में कौडिन्य ने ही बौद्धधर्म में दीक्षित करने की महती भूमिका निबाही थी।